क्यों मरते हैं तारे…वैज्ञानिकों ने खोजा कारण, मिले अहम सुराग

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : कौतूहल का विषय रहा है कि तारे कैसे और क्यों मरते  हैं। वैसे सबको पता है कि ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी चीज़ें दिख रही हैं, एक न एक दिन उनका अंत होना ही है। धूमकेतु, उल्का पिंड, मंदाकिनियां, ये सब एक दिन नष्ट हो जाएंगी। टिमटिमाने वाले तारे भी एक दिन नष्ट हो जाएंगे। पर सबसे जरूरी है कि यह जानें, तारे मरते कैसे हैं। दरअसल, तारों की मृत्यु उनके द्रव्यमान पर निर्भर करता हैं। एक तारे के पास जितना ज्यादा द्रव्यमान होता है, उसके पास उतना ही मटेरियल होता है।

गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उसके कोर का तापमान ज्यादा होता हैं, तो  उस तारे का मटेरियल जल्दी जल  हो जाता है। एक माध्यम द्रव्यमान वाले तारे की मृत्यु अलग प्रकार से होती हैं, और एक बड़े द्रव्यमान वाले तारे की मृत्यु अलग प्रकार से होती हैं।  जब ये कम द्रव्यमान वाले तारे अपने पूरे मटेरियल को fuse यानि संलयित कर लेते हैं, तो उनमे nuclear fusion यानि नाभिकीय संलयन की क्रिया बंद हो जाती हैं। फिर वह संतुलन में नही रह पाता हैं। और तारा अपना 50% ग्रहीय निहारिका के रूप में बाहर छोड़ देता हैं और बचता हैं केवल तारे का सफ़ेद चमकीला कोर, जिसे सफ़ेद बौना  कहते हैं और अंत में  यह भी नष्ट हो जाता है।

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने  पाया है कि जब न्यूट्रीनो का घनत्व ज्यादा होता है, तब कुछ न्यूट्रीनो अपने प्रारूप  आपस में बदल लेते हैं। जब तारे की गहराई में न्यूट्रीनो के अलग अलग प्रारूप अलग दिशाओं में उत्सर्जित होते हैं तब ये बदलाव बहुत ही तेजी से होते हैं, जिन्हें तीव्र बदलाव  कहा जाता है।

जब न्यूट्रीनो की संख्या बढ़ती है तब उनके बदलाव की दर भी बढ़ती जाती है, जिसका भार से कोई संबंध नहीं होता। सिकुड़ते हुए सुपरनोवा के केंद्र में विशाल विस्फोट होते समय बहुतायत संख्या में न्यूट्रीनों उछलते हुए जाते हैं, तो वे डोलने लगते हैं। न्यूट्रीनों के बीच की अंतरक्रिया ही पूरे सिस्टम के गुणों और बर्ताव के निर्धारित करती है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तारों की खास अवस्था सुपरनोवा  और उसमें कणों  के सबसे छोटे रूप न्यूट्रीनों  का अध्ययन कर नई जानकारी निकालने में सफलता पाई।