जो आपने कमाया नहीं, उसे बेचकर खाना कौन सा धर्म है?

मुंबई : मोदी सरकार के निजीकरण अभियान की देश में इस समय चर्चा है। बैंक कर्मचारी हाल ही में निजीकरण के खिलाफ हड़ताल पर चले गए थे। रेलवे और एलआईसी के निजीकरण पर भी चर्चा चल रही है। शिवसेना ने इन सभी मुद्दों पर नरेंद्र मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की है। पिछले सत्तर वर्षों में राष्ट्रीय संपत्ति बड़ी कठिनाई से खड़ी हुई है। न तो भाजपा और न ही मोदी सरकार ने इसमें कोई योगदान दिया है, ऐसा कहते हुए उस लेख में लिखा गया है कि जो आपने कमाया नहीं उसे बेच कर खाना कौन सा धर्म है।

शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय से मोदी सरकार के निजीकरण नीति की तीखी आलोचना की है। ‘देश में प्रमुख बंदरगाहों, हवाई अड्डों और कुछ राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण भी शुरू हो गया है। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार की नीति सार्वजनिक उद्यमों को पूंजीपतियों को सौंपने की है। एयर इंडिया, मझगांव डॉक, बंदरगाह, राष्ट्रीयकृत बैंक हमारी राष्ट्रीय संपत्ति थे। यह धन पूंजीपतियों के पसीने से नहीं बना, लेकिन मोदी सरकार ने इस राष्ट्रीय सम्पत्ति को उड़ाया या बेचा है। हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर अब अडानी जैसे उद्योगपतियों के होर्डिंग हैं। भले ही सरकार के मंत्री रेलवे और एलआईसी के निजीकरण के विचार न होने की बात कहते हो लेकिन उनके आश्वासन पर भरोसा करने का देश में माहौल नहीं है।

‘मोदी सरकार की आर्थिक नीति राष्ट्र या लोगों के हित में नहीं है, यह केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त पूंजीपतियों के हित में है। बैंकों का निजीकरण इसी की एक पहल है। सरकार कोई उद्योग या व्यापार न करे। यह सरकार का काम नहीं है, यही मोदी सरकार की नीति है। अगर ऐसा है तो फिर सरकार क्यों चला रहे हैं और बजट में लाभ-हानि क्यों बता रहे हैं? उद्योग और व्यापार वाणिज्य मंत्रालय को ताला लगा देना चहिएचहिए। दूसरे देशों के साथ व्यापार और उद्योग के समझौते होते हैं उसे भी बंद कर देने चहिए। ऐसा आक्रोश शिवसेना ने व्यक्त किया है।

सैकड़ों कंपनियों के 2.5 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश किया जाएगा। मूल रूप से इन सभी संपत्तियों की कीमत 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। यानी कि अगर मोदी सरकार इस अंदरूनी व्यापार के माध्यम से दो या तीन इष्ट व्यापारी मित्रों को 2.5 लाख करोड़ रुपये का फायदा दे रही है तो फिर टेबल के नीचे का यह व्यापार देश को नुकसान पहुंचा सकता है।

 एक दिन वे देश के अस्तित्व को समाप्त कर देंगे!

गुजरात व्यापारियों का प्रदेश है। वहाँ के लोगो के दिमाग में लाभ और हानि का व्यवसाय बहुत चलता है। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को अक्सर एक अच्छा व्यवसायी बताया है, लेकिन उनका इस व्यवसाय का असर देश की जड़ पर रहा है इसलिए चिंता हो रही है। सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश के नाम पर क्या वे एक दिन देश के अस्तित्व को ही समाप्त कर देंगे क्या? यह डर जनसामान्य और सही मायने में जो देशभक्त हैं उन्हे सताने लगा है।

आने वाले समय में जब स्वतंत्रता की डायमंड जुबली मनाई जाएगी, तो पिछले 75 वर्षों के दौरान बनाई गई राष्ट्रीय संपत्ति की झांकी होगी। इसमें नया क्या दिखाया जाएगा एक हजार करोड़ रुपये की लागत से निर्माण होने वाला संसद भवन! संसद भवन का स्वामित्व तो स्वतंत्र भारत के लोगों के पास रहने दें। यह निवेदन शिवसेना ने किया है।