देशव्यापी हड़ताल में शामिल होंगे पुणे के ढाई लाख मजदूर

पुणे जिला कामगार संगठन संयुक्त कृति समिति का दावा 
पिंपरी। केंद्र सरकार ने हालिया सत्र में प्रचलित 29 श्रम कानून रद्द कर मजदूर हित विरोधी नए चार कानून पारित किए। इन कानूनों को रद्द कर पहले के श्रम कानून की अमलबाजी की जाय, वित्त और रक्षा विभाग का निजीकरण और ठेकेदारीकरण रद्द करने समेत विभिन्न मांगों को लेकर संविधान दिवस यानी 26 नवंबर को सभी क्षेत्रों के मजदूर संगठनों ने मिलकर राष्ट्रीय हड़ताल का ऐलान किया है। इस देशव्यापी हड़ताल को समर्थन घोषित करते हुए पुणे जिला कामगार संगठन संयुक्त कृति समिति ने दावा किया है कि इस हड़ताल में पुणे और पिंपरी चिंचवड़ के ढाई लाख से ज्यादा मजदूर शामिल होंगे।
बीती शाम एक संवाददाता सम्मेलन में उपरोक्त जानकारी दी गई। इस हड़ताल को लेकर पुलिस ने मजदूर संगठनों को नोटिस जारी कर हड़ताल को गलत बताकर कार्रवाई की चेतावनी दी है। इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए पुणे जिला कामगार संगठन संयुक्त कृति समिति के अध्यक्ष कैलास कदम ने कहा कि पुलिस को इसका कोई हक ही नहीं है कि वह संवैधानिक तरीके से मजदूरों के हित में किये जा रहे आंदोलन या हड़ताल का विरोध करे। कदम के अलावा अन्य मजदूर नेताओं ने भी पिंपरी चिंचवड़ पुलिस की नोटिस पर कड़ी नाराजगी जताई है।
इस हड़ताल में पुणे जिले के औद्योगिक बसाहटों के इंटक, आयटक, सिटू, भारतीय कामगार सेना, श्रमिक एकता महासंघ, राष्ट्रीय श्रमिक एकता महासंघ, युटीयुसी, सर्व केंद्रीय मजदूर संगठनों से संलग्न और स्वतंत्र मजदूर संगठन, बैंक, बीमा, बिजली बोर्ड, रक्षा समेत सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूर, आंगनबाड़ी-आशा, आरोग्य परिचारक, मार्केट यार्ड संबंधित कर्मचारी-हमाल और घरेलू कर्मचारियों के अलावा ग्रामीण इलाकों में किसान भी शामिल होंगे। कोरोना की पृष्ठभूमि पर कोई मोर्चा या सभा नहीं आयोजित की गई है। सभी मजदूर मास्क लगाकर सड़क के दोनों तरफ मानवी श्रृंखला बनाएंगे और सरकार की नीतियों का विरोध करेंगे। इसकी जानकारी कैलास कदम ने दी। इस संवाददाता सम्मेलन में वरिष्ठ मजदूर नेता अजित अभ्यंकर, इरफान सय्यद, वी वी कदम, एस. डी. गोडसे, टी. ऐ. खराडे, दिलीप पवार, वसंत पवार, किशोर ढोकले, अर्जुन चव्हाण, रघुनाथ कुचिक, मनोहर गडेकर, अरुण बोराडे, अनिल रोहम, प्रसाद काटदरे, योगेश कोंढालकर, अरविंद जक्का समेत विभिन्न मजदूर संगठनों के मजदूर नेता मौजूद थे।
कदम ने कहा कि संसदीय सत्र में, सरकार ने विपक्ष की अनुपस्थिति में बिना किसी चर्चा के मौजूदा श्रम कानूनों को रद्द करके पूंजीपतियों के पक्ष में नए श्रम कानून पारित किए। इनमें ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020, सोशल सिक्योरिटी कोड 2019 और द इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 शामिल हैं। इससे श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा समाप्त हो जाएगी, श्रमिकों को गुलाम बनाया जाएगा और नियोक्ताओं को तानाशाही का अधिकार दिया जाएगा। डॉ  अजीत अभ्यंकर ने कहा कि नए कानून किसी भी समय श्रमिकों की सेवा सुरक्षा को खत्म कर देंगे और प्रबंधन को बिना किसी कारण के किसी भी क्षण श्रमिकों को आग लगाने की आजादी देंगे। इन कानूनों का कड़ा विरोध है, साथ ही केंद्र सरकार के वित्त, बीमा, रक्षा, क्षेत्र के निजीकरण और अनुबंध पर भी।
कृति समिति की ओर से विभिन्न मांगें सरकार के समक्ष रखी गई हैं। इसमें संगठित और असंगठित क्षेत्र के उन श्रमिकों को कम से कम दस हजार रुपये का अनुदान दिया जाना चाहिए जो तालाबंदी के कारण बेरोजगार हो गए हैं। सभी को राशन की दुकान से हर महीने अनाज दिया जाना चाहिए, जब तक कि कोरोना का संकट न दूर हो जाए। अवैध रूप से बंद की गई सभी फैक्ट्रियों के श्रमिकों को पूरा वेतन दिया जाए। कोरोना अवधि का बिजली बिल माफ करें।  स्वामीनाथन आयोग को लागू किया जाए। मनरेगा को एक वर्ष में कम से कम 200 कार्य दिवस प्रदान करने चाहिए। शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना का भी परिचय दें। कोरोना अवधि के दौरान आंगनवाड़ी और आशा कर्मचारियों ने अपने जीवन के जोखिम पर काम किया है। उन्हें स्थायी सेवा में रखा जाना चाहिए।कुल जीडीपी का तीन फीसदी हेल्थकेयर को आवंटित किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र राज्य सरकार के आदेश के अनुसार, सभी स्थायी और अनुबंध श्रमिकों को लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रतिष्ठानों द्वारा पूरी मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए।