पर्यावरण दिवस: बेहतर कल के लिए इतना तो हम कर ही सकते हैं

हमारे आसपास का मौसम बहुत तेज़ी से बदल रहा है। कुछ साल पहले तक जहाँ गर्मी नाममात्र पड़ती थी, आज वहां आग बरस रही है और जहाँ इंद्रदेव हमेशा मेहरबान रहते थे वे इलाके सूखे की मार सह रहे हैं। ये बदलाव कुछ और नहीं बल्कि हमारे द्वारा की जा रही पर्यावरण की अनदेखी का परिणाम हैं। हम भले ही इसके लिए सीधे तौर पर सरकार या उसकी एजेंसियों को कुसूरवार ठहरा सकते हैं, लेकिन पर्यावरण के इस हाल के लिए हम भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। इस पर्यावरण दिवस के मौके पर आइये जानें कि हमारे सामने क्या मुख्य चुनौतियाँ हैं और हम उनका मुकाबला कैसे कर सकते हैं:

जलवायु परिवर्तन आज सबसे बड़ी समस्या है। अत्यधिक गर्मी और नाममात्र बारिश इसी का हिस्सा है। आज सूखे का दायरा बढ़ रहा है, फसलें चौपट हो रही हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि तापमान तेज़ी से बढ़ने के चलते धुव्रीय क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है। इससे बाढ़ आने के साथ ही कई तटीय शहरों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। इंसानों की तरह वन्यजीवों के लिए भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।

आप क्या कर सकते हैं: बिजली की बर्बादी से बचें, जरूरत न हो तो बिजली का इस्तेमाल न करें। गाड़ी का उपयोग कम कर दें, कम से कम छोटी-मोटी दूरी के लिए तो इससे इस्तेमाल से बचें। एलईडी बल्ब प्रयोग में लाएं, इससे बिजली की खपत कम होती है। पेड़ों को नुकसान न पहुंचाएं, जितना संभव हो वृक्षारोपण करें।

पर्यावरण के लिए दूसरी बड़ी चुनौती है प्रदूषण और प्लास्टिक का बढ़ता कचरा। ज्यादा से ज्यादा आधुनिक सुविधाओं की चाह ने प्रदूषण को नियंत्रण से बाहर कर दिया है। प्रदूषण सीधेतौर पर हमारे क्रियाकलापों की ही देन है। प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारी प्रयासों, उद्योगों में नई तकनीक अपनाने के अलावा आम लोगों को भी इसमें भूमिका निभानी होगी।

आप क्या कर सकते हैं: प्रदूषण फैलाने वाली चीज़ों से बचें। अपने वाहन की नियमित जांच कराएं कि कहीं वह प्रदूषण तो नहीं फैला रहा। रीसाइकल की आदत डालें और प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें।

आबादी का बोझ धरती पर तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। लिहाजा अगर अभी कदम नहीं उठाये गए तो आने वाला वक़्त बहुत डरावना होगा। अगर हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को एक बेहतर जीवन देना चाहते हैं तो हमें पानी, भोजन, रहने के लिए जगह आदि के साथ धरती को साफ-सुथरा बनाकर रखना होगा।

आप क्या कर सकते हैं: खाने-पानी को बर्बाद न करें। आबादी पर अंकुश लगाएं, कम से कम यह तो हम कर ही सकते हैं। इसके लिए हमें सरकार का मुंह ताकने की ज़रूरत नहीं है।

प्रत्येक जीव की हमारी धरती पर अपनी अलग भूमिका है, इसलिए उनका संरक्षण बेहद ज़रूरी है। जैसे कि मधुमक्खियों की आबादी घट रही है तो परागण की भूमिका के कारण इसका पर्यावरण के साथ-साथ खाद्यान्न उत्पादन पर भी असर होगा। मौजूदा वक़्त में कई जीव-जंतुओं के लिए खतरा पैदा हो गया है। हम अपनी सुख-सुविधाओं के नाम पर या आधुनिक बनने के नाम पर जीव-जंतुओं को ख़त्म करने में लगे हैं।

आप क्या कर सकते हैं: जीव-जंतुओं का संरक्षण करें। सरकार को चाहिए कि जंगलों को ख़त्म होने से रोके, वन्यजीवों के इंसानों पर बढ़ते हमले हमारे द्वारा उनके घरों में अतिक्रमण का ही परिणाम हैं।

सूखती नदियां इस बात का संकेत हैं कि आने वाले वर्षों में पानी की कीमत पेट्रोल जितनी हो जाएगी। अभी आस्था के नाम पर तो अन्धविश्वास के नाम पर नदियों को ख़त्म किया जा रहा है। यदि नदियाँ इसी तरह सूखती रहीं, तो हालात बहुत बुरे हो जाएंगे। इसके अलावा बड़े पैमाने पर होने वाली पानी की बर्बादी भी हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है। जहाँ पानी बहुतायत में है, वहां उसकी बर्बादी भी ज्यादा है।

आप क्या कर सकते हैं: नदियों को साफ सुधरा रखने में सरकार की सहायता करें। आस्था के नाम पर नदियों में प्लास्टिक न फेंकें। पानी बचाएं, पानी की बर्बादी रोकना तो हमारे हाथ में है। केवल उतना ही पानी इस्तेमाल करें, जितना सही मायनों में ज़रूरी है।