महिलाओं को शबरीमाला मंदिर में प्रवेश देने संबंधी अदालत का फैसला अंतिम शब्द नहीं है- चीफ जस्टिस

समाचार ऑनलाइन- शबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस शरद बोबड़े ने कहा कि, “साल 2018 में शबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला अंतिम शब्द नहीं है.”

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बिंदू अम्मिनी नामक केरली महिला को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था, जिसके खिलाफ इस महिला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. मुख्य न्यायाधीश शरद बोबड़े की अध्यक्षता वाली एक पीठ के समक्ष इस याचिका पर सुनवाई की जा रही है. याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंग ने कोर्ट से कहा कि, “सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए शबरीमाला मंदिर जा रही बिंदू अम्मिनी को पुलिस आयुक्त कार्यालय के सामने पीटा गया था”.

जयसिंह के तर्क पर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “इस मामले को सात-सदस्यीय पीठ को भेजा गया है। इस पर सात सदस्यीय बेंच फैसला करेगी। अदालत ने अभी तक इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है,”  बताया जा रहा है कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच का नतीजा आने तक इस पुनर्विचार की याचिका को अलग रखने का फैसला किया गया है.

कोर्ट का फैसला क्या कहता है?

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि, सिर्फ शारीरिक कारणों से शबरीमाला मंदिर में महिलाओं को न जाने देना, मर्द की मानसिकता को दर्शाता और इसे कानून की नजर में सही नहीं ठहराया जा सकता. यह महिलाओं पर अत्याचार करने के उद्देश्य को दर्शाता है। भक्ति में पक्षपात का कोई स्थान नहीं है, इसलिए हम सभी उम्र की महिलाओं के लिए शबरीमाला मंदिर के द्वार खोल रहे हैं, “