संघ की भूमि में भाजपा का अतिआत्मविश्वास ने उसे डुबाया; उम्मीदवार बदलना महंगा पड़ा, कांग्रेस ऊपर आई 

नागपुर, 5 दिसंबर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कर्मभूमि, दिल्ली के नेताओं से लेकर गली के पदाधिकारियों तक की फौज और खास पिछले 58 वर्षो से नॉटआउट का इतिहास। इतना सब कुछ पक्ष में होने के बावजूद भाजपा नागपुर स्नातक विधान परिषद् सीट बचा नहीं पाई।  तुलनात्मक रूप  से नए और युवा अभिजीत वंजारी ने अपना कौशल दिखाते हुए भाजपा को धूल चटा दी।  भाजपा की हार के कई कारण हो सकते है लेकिन इसके बावजूद इस सीट पर जीत के संदर्भ में भाजपा के अतिआत्मविश्वास ने उसे डूबा दिया है।

भाजपा पिछले डेढ़ साल से इस सीट पर खास ध्यान दिया था और हवा बनाया था।  लेकिन प्रत्यक्षपर रूप से पूर्व विधायक अनिल सोले व कई चेहरे को छोड़कर अन्य लोगों का मतदाताओं से प्रत्यक्ष रूप से संपर्क टूट गया था।  गडकरी के खास समर्थक सोले को आखिरी तक उम्मीदवारी देने का आश्वासन दिया गया था।  लेकिन ऐन मौके पर संदीप जोशी को उम्मीदवार बना दिया गया।  इसकी वजह से पार्टी के अंदर नाराजगी थी।  इसके साथ ही मनपा के पूर्व आयुक्त तुकाराम मुंढे के जनसमर्थन के कारण उनका विरोध करने वाले संदीप जोशी विवाद में आ गए थे।  सोशल मीडिया में जोशी के खिलाफ मुहीम चलाई गई थी।

लेकिन भाजपा के प्रचार तंत्र ने इन बातों के साथ जातीय समीकरण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया।  इस असर मतदान के दौरान हुआ।  दूसरी तरफ साफ छवि और काम की प्रतिभा के दम पर वंजारी मतदाताओं  के बीच गए थे। पिछले डेढ़ से दो साल से वंजारी के व्यक्तिगत प्रयास और रजिस्ट्रेशन पर जोर दिया और खास कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक से संपर्क बनाये रखने की वजह से वह मैदान मारने में कामयाब रहे. नागपुर यूनिवर्सिटी का पिछले 15 वर्षों का उनका   काम मतदाताओं के सामने था। इस चुनाव से पहले गुटबाजी को दूर करके कांग्रेस के नेता प्रचार में एकजुट नज़र आये और वंजारी ने करिश्मा कर दिखाया।