स्थायी समिति सभापति चुनाव: भाजपा के शीतल शिंदे ने लहराया बगावत का परचम

पिंपरी : समाचार ऑनलाइन – नए सदस्यों की नियुक्तियों के बाद जिसकी उत्सुकता सतह पर पहुंची थी वह शनिवार को खत्म हो गई। पिंपरी चिंचवड मनपा की तिजोरी की चाबियां अपने पास रखने वाली स्थायी समिति के नए सभापति पद के लिए सत्तादल भाजपा ने फिर एक बार धक्का तंत्र अपनाते हुए विलास मडिगेरी को प्रत्याशी घोषित किया। ऐन मौके पर शीतल उर्फ विजय शिंदे का पत्ता कट जाने से उन्होंने बगावत का परचम लहरा दिया है।भले ही राष्ट्रवादी कांग्रेस की ओर से मयूर कलाटे ने नामांकन दाखिल किया हो। मगर माना जा रहा है कि शिंदे शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के समर्थन से मैदान में डटे रहेंगे।

आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाली स्थायी समिति के 16 सदस्यों में सत्तादल भाजपा के सर्वाधिक 10, राष्ट्रवादी कांग्रेस के चार और शिवसेना व निर्दलीय मोर्चे के एक- एक सदस्य है। फरवरी माह में भाजपा की सारिका लांडगे, यशोदा बोईनवाड, अर्चना बारणे, विकास डोलस, निर्दलीय साधना मलेकर, राष्ट्रवादी काँग्रेस के राजू मिसाल, मोरेश्वर भोंडवे और शिवसेना के अमित गावडे का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनकी जगह भाजपा की आरती चोन्धे, शीतल उर्फ विजय शिंदे, संतोष लोंढे, राजेंद्र लांडगे, राष्ट्रवादी कांग्रेस के पंकज भालेकर, मयूर कलाटे, शिवसेना के राहुल कलाटे और निर्दलीय मोर्चा की झामाबाई बारणे की नियुक्ति की गई है।

सदस्यों की नियुक्तियों के बाद नए सभापति को लेकर उत्सुकता बढ़ चली थी। मौजूदा सभापति ममता गायकवाड़ के अध्यक्ष पद का कार्यकाल समाप्त हो गया है। विभागीय आयुक्तालय ने सभापति के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की है। इसके अनुसार विलास मडिगेरी, शीतल शिंदे और मयूर कलाटे ने नामांकन पत्र दाखिल किया। इस साल सभापति पद को होड़ में भाजपा के पुराने निष्ठावानों के गुट से वरिष्ठ नगरसेवक शीतल उर्फ विजय शिंदे, विधायक महेश लांडगे गुट से संतोष लोंढे, विधायक व शहराध्यक्ष लक्ष्मण जगताप गुट से झामाबाई बारणे, आरती चोंधे शामिल थे। इसमें से सत्तादल के विधायक लक्ष्मण जगताप ने बीते साल की तरह इस बार भी धक्का तंत्र अपनाते हुए विलास मडिगेरी के नाम पर अपनी पसंद की मुहर लगाई है। उन्होंने ऐसा कर एक पत्थर से दो निशाने साधे हैं। मडिगेरी के रूप में भोसरी विधानसभा क्षेत्र के साथ साथ पुराने निष्ठावानों के गुट के नगरसेवक को न्याय देने का दावा किया जा रहा है। हालांकि शिंदे की बगावत से मडिगेरी की राह आसान नहीं जान पड़ रही।