शॉर्ट फिल्म्स अब कोई छोटी बात नहीं है : फिल्म निर्माता

मुंबई : समाचार ऑनलाइन – शॉर्ट फिल्मों ने हाल ही में भारत के दो सबसे बड़े फिल्म महोत्सवों में अपनी जगह बनाने में सफल रही हैं। इनमें से एक है जियो मामी फिल्म फेस्टिवल और आगामी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (आईएफएफआई)। विदेशों में आयोजित होने वाले फिल्म महोत्सवों में इन फिल्मों की बढ़ती उपस्थिति कारण इस शैली का महत्व धीरे-धीरे, लेकिन लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

फिलहाल ‘लेटर्स’ नामक एक शॉर्ट फिल्म काफी सूर्खियां बटोर रही है जिसे आगामी 50वें आईएफएफआई में इंडियन पैनोरामा के नॉन-फीचर फिल्म सेक्शन के लिए चुना गया है। यह फिल्म द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रचलित लेटर सेंसरशिप पर आधारित है।

‘लेटर्स’ के निर्देशक निखिल सिंघल का मानना है कि फिल्म बनाते समय प्रारूप का चुनाव उसके विषय पर निर्भर होना चाहिए।

सिंघल ने आईएएनएस को बताया, “यह कहानी की प्रकृति पर निर्भर करता है। कुछ कहानियों को छोटे प्रारूप की आवश्यकता होती है और कुछ फीचर जैसी लंबी-सिनेमा के लिए बिल्कुल उपयुक्त होता है। नवागंतुक फिल्म निर्माताओं के लिए बजट भी एक मुद्दा है और इसी वजह से हम शॉर्ट फिल्मों के साथ शुरुआत करते हैं। शॉर्ट फिल्मों के लिए किसी प्रोड्यूसर का मिलना भी काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि ये फिल्में थिएटर्स में रिलीज नहीं होती है। फीचर फिल्मों की तुलना में निवेश काफी हद तक कम है।”

इस साल जियो मामी में चार शॉर्ट फिल्में दिखाई गई- ‘सेपिया’, ‘सिबलिंग’, ‘नवाब’ और ‘अधीन।’

‘सेपिया’ के निर्देशक अर्चित कुमार ने कहा, “इस तरह के प्रमुख फिल्म महोत्सवों में फीचर फिल्मों की ही तरह लघु फिल्में भी दिखाई जानी चाहिए क्योंकि इस प्रारूप में फिल्मों को देखने की रूचि लोगों में बढ़ रही है। नवोदित फिल्म निर्माताओं के लिए इसे एक विकल्प या मनोरंजन के व्यवसाय में प्रवेश करने के एक कदम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।”

बॉलीवुड अभिनेता अपारशक्ति खुराना ‘सेपिया’ और ‘नवाब’ में मुख्य भूमिका में हैं। अपारशक्ति का मानना है कि लघु फिल्मों की लोकप्रियता इस वजह से भी बढ़ रही है क्योंकि दर्शक फीचर फिल्मों से परे सिनेमाई कहानी के कहने के अन्य प्रारूपों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

अपारशक्ति ने कहा, “वीडियो बनाने का पूरा तरीका बदल गया है। हम जिस तरह के म्यूजिक वीडियोज देख रहे हैं, उन्हें देखें। उत्पादन की गुणवत्ता काफी अच्छी है इसलिए कहानी भी अच्छी है बल्कि कई म्यूजिक वीडियोज तो लगभग शॉर्ट फिल्मों के जैसे ही हैं। 90 के दशक में, यूफोरिया बैंड के वे सारे वीडियोज शॉर्ट फिल्मों की ही तरह थे।”

अपारशक्ति ने कहा कि इंडस्ट्री के लिए लघु फिल्मों का प्रादुर्भाव केवल लाभकारी ही हो सकता है। उन्होंने कहा, “हम अभिनेताओं पर इस बात का वाकई में कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम लघु में काम कर रहे हैं या फीचर में। दर्शकों के साथ तालमेल रखते हुए कहानी मायने रखती है।”

बॉलीवुड में मशहूर फिल्मकार इम्तियाज अली शॉर्ट फिल्में बनाने की चाह रखने वाले फिल्म निर्माताओं को ‘हमारामूवी’ प्लेटफॉर्म पर फिल्में बनाने की सलाह देते हैं।

उन्होंने कहा, “मेरे ख्याल से छोटे प्रारूप में कहानी को बताया जाना कठिन है। मैंने कई बार कोशिश की है और एक सीमित समय में अपने विचार का समापन करना वाकई में आसान नहीं है।”

‘द अदर वे’ के साथ अली ने लघु फिल्म निर्माण में अपना हाथ आजमाया है।

अर्चित और निखिल की तरह नए जमाने के फिल्मकार डिजिटल प्लेटफॉर्म के विकास की ओर इशारा कर रहे हैं, जो लघु फिल्मों की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से है।

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