विक्रम विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाएगा धर्म का विज्ञान, छात्र जानेंगे- राम नाम के पत्थर समुद्र में क्यों तैरे  

उज्जैन. ऑनलाइन टीम : श्रीरामचरित मानस संसार के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थों में से एक है। गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित इस ग्रन्थ में मानव जीवन के सभी प्रश्नों का उत्त्र मिलता है। गोस्वामी जी ने अपने इस महान ग्रन्थ में समाज के प्रत्येक पक्ष का वर्णन किया है। यह एक ऐसा अदभुत ग्रन्थ है, जिसको जिस भी दृष्टिकोण से देखा जाए, उसी दृष्टिकोण से ये ग्रन्थ नजर आता है। गोस्वामी जी का ये महान ग्रन्थ अध्यात्मिक भी है, सामाजिक भी है, राजनैतिक भी है और व्यक्तिगत है। इसकी महत्ता को और प्रतिष्ठित करने के लिए विक्रम विश्वविद्यालय में ‘श्रीरामचरित मानस में विज्ञान और संस्कृति’ प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम शुरू किया है।   उप्र सरकार के अयोध्या शोध संस्थान और संस्कृति विभाग की मदद से इसे पढ़ाया जाएगा।

यहां छात्र पढेंगे कि राम नाम के पत्थर समुद्र में क्यों तैरे। रावण का पुष्पक विमान मन की गति से कैसे उड़ान भरता था। बाली के पास ऐसी कौन सी विद्या थी, जिससे वह रोज सुबह पृथ्वी के ढाई चक्कर लगा लेता था। आकाशवाणी कैसे होती थी। श्रीरामचरित मानस के इन प्रसंगों के धार्मिक महत्व के साथ जुड़ा विज्ञान भी यहां पढ़ाया जाएगा। विक्रम विश्व विद्यालय के कुलपति का कहना है कि देश में संभवत: यह अपने किस्म का पहला पाठ्यक्रम होगा, जिसमें धर्म का विज्ञान पढ़ाया जाएगा। इसमें पढ़ाने के लिए अयोध्या के वैदिक विद्वान को उज्जैन बुलाएंगे। यही नहीं, श्रीरामचरित मानस में विज्ञान विषय में बंद कमरे में थ्योरी पढ़ाने के साथ बड़ी संख्या में प्रैक्टिकल भी करवाए जाएंगे। इसके तहत विद्यार्थियों को रामजन्म भूमि, वनवास पथ पर ले जाया जाएगा।

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश पांडेय ने कहा कि वहां के आसपास के क्षेत्रों के साथ संबंधित क्षेत्र के विद्वानों के व्याख्यान करवाए जाएंगे। इसके अलावा राम के अयोध्या में रहने, गुरु विश्वामित्र से ज्ञानार्जन करने, राक्षसों के अंत, अहिल्या उद्धार, सीता विवाह के स्थलों पर मौके से रिपोर्ट भी तैयार करवाई जाएगी। यह पाठ्यक्रम 20 सीटों के साथ शुरू किया है। प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थी 28 दिसंबर तक एमपी ऑनलाइन के जरिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे।