संजीव भट्ट की जमानत के लिए अमेरिका से आई गुहार, भारतीय-अमेरिकी संगठन हुए मुखर

वाशिंगटन.ऑनलाइन टीम : सुप्रीम कोर्ट 22 जनवरी को पूर्व पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगा। यह मामला साल 1990 का है। उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर में एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के पद पर तैनात थे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा के वक्त जमजोधपुर में संप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने 150 लोगों को हिरासत में लिया। इनमें से एक शख्स प्रभुदास वैष्णानी की कथित टॉर्चर के कारण रिहा होने के बाद अस्पताल में मौत हो गई थी। इसके बाद आठ पुलिसवालों पर कस्टडी में मौत को लेकर मामला दर्ज किया गया, जिसमें भट्ट भी शामिल थे।

अब भारत और अमेरिका के कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भारत के उच्चतम न्यायालय से सोमवार को अपील की कि वह पूर्व पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत मंजूर करे। इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) और ‘हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स’ द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में संगठनों और कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि हत्या के एक मामले में भट्ट की दोषसिद्धि गलत है और यह झूठे सबूतों पर आधारित है।

बता दें कि संजीव भट्ट  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर विरोधी रहे हैं।  कस्टोडियल डेथ के मामले के बाद साल 1996 में जब वह बनासकांठा जिले के एसपी थे, तब उन पर राजस्थान के एक वकील को फर्जी ड्रग्स मामले में फंसाने का आरोप लगा। साल 1998 में उन पर एक अन्य मामले में कस्टडी में टॉर्चर का आरोप लगा था।

याद रहे, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सिक्योरिटी भी भट्ट के ही हाथों में थी। इसी दौरान फरवरी-मार्च 2002 के दौरान गोधरा में ट्रेन जला दी गई, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। बताया जाता है कि इस घटना में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए।

भट्ट कैदियों के बीच खासे मशहूर रहे। साल 2003 में भट्ट को साबरमती सेंट्रल जेल का अधीक्षक बनाया गया था। उस दौरान उन्होंने जेल के खाने में गाजर का हलवा शामिल कराया। दो महीने बाद कैदियों से नजदीकियां बढ़ाने को लेकर उनका तबादला कर दिया गया। 14 नवंबर 2003 को करीब 2000 कैदी भूख हड़ताल पर चले गए। 6 दोषियों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए अपनी कलाई तक काट ली थी।