सांगली-जलगांव का करेक्ट प्रोग्राम तो सिर्फ एक शुरुआत है, शिवसेना ने दी भाजपा को चेतावनी

सांगली – जलगांव का करेक्ट कार्यक्रम, यह तो सिर्फ बिगुल बजाने की शुरुआत हुई है। इस तरह के कई कार्यक्रम होंगे, यह चेतावनी शिवसेना ने दी है। सांगली जलगांव में सत्ता परिवर्तन हुआ है।  भले ही उनके पास कोई बड़ी नैतिक नींव नहीं थी लेकिन फिर भी  बीजेपी ने नैतिक या अनैतिक विषयो पर बोलने का अधिकार खो दिया है।  शिवसेना ने सामना के संपादकीय में ऐसा कहा है।

 जयंत पाटिल ने सांगली मनपा में भारतीय जनता पार्टी का करेक्ट प्रोग्राम किया। उन्होंने मनपा से भाजपा को उखाड़ फेंका और राष्ट्रवादी का महापौर बनाया। यह प्रोग्राम करेक्ट हो इसके लिए 17 भाजपा नगरसेवकों ने हवा के रुख को देखते हुए मतदान किया। उससे भी अच्छा करेक्ट प्रोग्राम जलगांव मनपा में हुआ, वहाँ के 27 भाजपा नगरसेवको ने हवा के रुख को पहचानते हुए शिवसेना का महापौर बनाने के लिए मतदान किया। इस तरह सांगली के बाद जलगांव में भी भाजपा किला ढह गया। जलगांव में महापौर और उपमहापौर शिवसेना के बने। इसलिए  उत्तरी महाराष्ट्र के स्वयंभू सम्राट  गिरीश महाजन को जोरदार झटका लगा है।

एकनाथ खडसे ने उनकी राजनीति और जलगांव पर उनके प्रभुत्व की धमक दिखाई है। भारतीय जनता पार्टी का बुलबुला एक के बाद एक करके फूट रहा है। महाराष्ट्र में  भाजपा को एक अस्थायी झटका लगा था। कुछ मंडलो ने गलतफहमी पाल रखी है कि इससे पार्टी का विकास हो रहा है। अहंकार की हवाओं ने भाजपा नेताओं के कानों में प्रवेश किया। इस अहंकार की हार जलगांव में हुई है। एकनाथ खडसे और गिरीश महाजन के बीच राजनीतिक दरार है। खडसे ने भाजपा क्यों छोड़ी इसके मुख्य कारण में से गिरीश महाजन एक है। जलगांव कभी भी भाजपा का गढ़ नहीं था। मनपा चुनाव में इधर उधर से लोगो को तोड़ कर महाजन भाजपा को सत्ता में लाए। महाजन का शासन एकाधिकारवादी और अभिमानी था। इसीलिए भाजपा के नगरसेवक ऊब गए थे। महाजन का अहंकार इतना चरम पर है कि वे कहने लगे कि हमारे पास पूरी क्षमता है,  अगर पार्टी जिम्मेदारी देती है तो बारामती भी जीत कर दिखा दूंगा। दूसरों को तुच्छ समझने की उनकी आदत ने जलगांव में भाजपा को डूबा दिया।

भाजपा महाराष्ट्र में पांच साल तक सत्ता में थी। इस सत्ते से पैसा और पैसे से सभी स्तरों पर सत्ता खरीदाने के लिए इस्तेमाल किया गया। पैसा फेक कर सबकुछ खरीद्ने का नया सिद्धांत भाजपा ने अपनाया है। लेकिन महाराष्ट्र में 105 विधायकों के जीत कर आने के बाद भी भाजपा राज्य में सत्ता हासिल नहीं कर सकी। जब शक्ति चली जाती है, ज्ञान चला जाता है, जब ज्ञान चला जाता है तो पूंजी चली जाती है, जब पूंजी चली जाती है तो कौवे बाड़ पर से उड़ जाते हैं। इसका अनुभव भाजपा फिलहाल ले रही है। इन अनुभवों से ज्ञान प्राप्त करना बेहतर है। सांगली-जलगाँव में भाजपा का प्रोग्राम एक्दम करेक्ट हुआ। राज्य के अन्य स्थानों पर भी सही समय पर इस तरह के करेक्ट प्रोग्राम किए जाएंगे। अंत में, सत्ता ही हथियार है और सत्ता ही संकटमोचन, ढाल साबित होता है। अन्य सभी अहंकार और अभिमान व्यर्थ है। हवा के झोंके से यह सब उड़ जाती है।

नागपुर और पुणे जैसे भाजपा के पारंपरिक गढ़ भी स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव में ढह गए। वहाँ तो लोगों का सीधा वोट था। तभी यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा के हाथों से सत्ता रेत की तरह फिसल रही है। जब से महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार सत्ता में आई है, तब से यहां के लोगों का डर खत्म हो गया है। लोग निडर होकर मतदान कर रहे हैं। ईडी,  आयकर विभाग का डर आम आदमी के लिए नहीं है। अब तक  भाजपा ने इस भय को दिखा कर हराजनीतिक स्वार्थ सिद्ध किया। पुलिस प्रणाली का इस्तेमाल कर ग्राम पंचायत से विधानसभा तक के चुनाव जीते। अब वो भय खत्म हो गया है, लोग अब स्वतंत्र रूप से संवाद करने में सक्षम हैं। अंत में यह सब सत्ता की महिमा ही है। भाजपा ने इसका महिमामंडन किया। इसलिए  भाजपा को महाविकास आघाड़ी की ओर अपनी उंगली दिखाने की कोई जरूरत नहीं है।