साने के इस्तीफे से सत्तादल व प्रशासन को मिली राहत

पिंपरी : समाचार ऑनलाईन – विपक्षी नेता पद से दत्ता साने का इस्तीफा दिया जाना भले ही राष्ट्रवादी कांग्रेस का अपना आपसी मामला हो, मगर उनके इस्तीफे के बाद सबसे ज्यादा राहत पिंपरी चिंचवड़ मनपा के सत्तादल भाजपा और प्रशासन को काफी राहत मिली है। अपने साढ़े 13 माह के कार्यकाल में साने ने इन दोनों की नींद हराम कर रखी थी। अब अपने इस तेज तर्रार नेता के इस्तीफे के बाद राष्ट्रवादी किसे विपक्षी नेता की कुर्सी पर बिठाएगी? इसकी उत्सुकता बढ़ गई है। फिलहाल इस पद के लिए वरिष्ठ नगरसेवक नाना काटे, जावेद शेख, डॉ वैशाली घोडेकर, मयूर कलाटे, अजीत गवहाणे आदि रेस में हैं।

17 मई 2018 को दत्ता साने मनपा के नए विपक्षी नेता चुने गए। सभागृह के भीतर और बाहर ‘जरा हटके’ आंदोलन और प्रशासन व सत्तादल भाजपा की मनमानी पर लगाम कसने के अलग- अलग फंडों से दोनों की नाक में दम कर दिया। राष्ट्रवादी के पहले विपक्षी नेता योगेश बहल की तुलना में साने का कार्यकाल काफी गूंजा। वे सालभर लगातार चर्चा में रहे। ऐसे में माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव तक वे इस पद पर बने रहेंगे। मगर इस साल की 17 मई को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस पद की आस लगाए बैठे राष्ट्रवादी के अन्य इच्छुकों की गतिविधियां तेज हो गई थी। उनके दबाव के चलते पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने पार्टी के शहराध्यक्ष सँजोग वाघेरे को साने से इस्तीफा लेने के आदेश दिए। इसके चलते मंगलवार को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

अपने साढ़े 13 माह के कार्यकाल में दत्ता साने ने अलग-अलग विषयों पर लगभग रोजाना एक पत्र या ज्ञापन मनपा आयुक्त के साथ साथ पुलिस आयुक्त, प्राधिकरण के सीईओ, जिलाधिकारी, पीएमपीएमएल, मेट्रो, स्मार्ट सिटी कंपनी को दिए हैं। सत्तादल व प्रशासन की मनमानी और भ्रष्ट कामकाज पर उनकी पैनी नजर रही। उनकी शिकायतों और आंदोलनों से लगभग 360 टेंडरों की जांच हुई। वेस्ट टू एनर्जी परियोजना और भोसरी में मनपा अस्पताल के निजीकरण को स्थगिति उनके आंदोलनों के नतीजा है। उसी में उनकी एक प्रतिज्ञा भी काफी चर्चा में रही, वह थी, भोसरी के विधायक महेश लांडगे को हराने तक चुटिया न बांधने की। अब भले ही विपक्षी नेता कोई भी बने मगर अब कम से कम साने की पैनी नजर और आक्रामकता से तो बचा जा सकेगा। इस कारण साने के इस्तीफे से सबसे ज्यादा राहत भाजपा और प्रशासन को मिली है।