सांड की आंख Review: शूटर दादी की दमदार कहानी है तापसी-भूमि की फिल्म ‘सांड की आंख’

मुंबई : समाचार ऑनलाइन – सबसे बुजुर्ग शार्पशूटर प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर पर आधारित है फिल्म सांड की आंख। यह फिल्म 25 अक्तूबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। हालांकि रिलीज से पहले ही फिल्म की रिव्यु आनी शुरू हो गयी है। फिल्म में प्रकाशी तोमर के किरदार में तापसी पन्नू और चंद्रो तोमर के रोल में भूमि पेडनेकर नजर आ रही हैं। फिल्म का फर्स्ट हाफ एक पल के लिए भी दर्शकों सीट से उठने नहीं देता। बता दें कि दमदार कहानी और जबरदस्त डायलॉग ‘सांड की आंख’ को बेहद शानदार बनाती है। फिल्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश की है तो आपको फिल्म में गांव का माहौल और सामाजिक संरचना भी देखने को मिलेगी। गांव की पितृसत्तातमक संरचना और उसे झेलती महिलाओं की परेशानियां भी देखने को मिलेंगी।


कहानी –

चंद्रो (भूमि पेडनेकर) और प्रकाशी (तापसी पन्नू) देवरानी-जेठानी हैं जो गांव के पितृसत्तातमक समाज को पसंद नहीं करती हैं लेकिन उनका पालन पोषण ऐसा हुआ है कि वह उस परिस्थिति में भी खुद को ढाल लेती हैं और खुद के लिए थोड़ा बहुत समय निकाल लेती हैं। 60 साल की उम्र में जौहरी गांव की रहने वाली चंद्रो और प्रकाशी को अपना निशानेबाजी का टैलंट पता चलता है। इसके बाद डॉक्टर से शूटर बने डॉक्टर यशपाल (विनीत कुमार सिंह) उनकी मदद करते हैं। चंद्रो और प्रकाशी इसके बाद कई चैंपियनशिप में मेडल जीतती हैं। जाहिर सी बात है कि चंद्रो और प्रकाशी के इस शौक से उनके परिवार और गांव के पुरुष पसंद नहीं करते हैं। चंद्रो और प्रकाशी के इस संघर्ष और सफलता की ही कहानी है ‘सांड की आंख’। फिल्म अंत में महिला सशक्तिकरण को लेकर एक अच्छा संदेश देती है।


डायरेक्शन –
तुषार हीरानंदानी ने फिल्म सांड की आंख से बतौर डायरेक्टर बॉलीवुड में डेब्यू किया है। इससे पहले वो हाफ गर्लफ्रेंड, ग्रेट ग्रैंड मस्ती, मैं तेरा हीरो, एक विलेन आदी फिल्मों के राइटर रह चुके हैं। पर्दे पर उन्होंने शूटर दादी की कहानी को बखूबी उतारा है। दमदार डायलॉग और पंच इस कहानी को और भी खूबसूरत बनाते है। बॉलीवुड में अक्सर इस तरह की फिल्मों में जबरदस्त ड्रामा देखने को मिलता है। लेकिन सांड की आंख में तुषार ने कहानी में सभी चीजों को बराबर तरीके से दिखाया है।

एक्टिंग –
चन्द्रो तोमर के रोल में भूमि पेडनेकर और प्रकाशी तोमर के रोल में तापसी पन्नू की जितनी तारीफ की जाए कम है। पर्दे पर जब दोनों साथ में होती हैं, तो आप उनका काम देखकर मन ही मन उनकी दाद दे रहा होता है। कई सीन ऐसे हैं, जिनमें दोनों की एक्टिंग दूसरे से बेहतर है। दोनों एक-दूसरे के साथ फिट बैठती हैं।  भूमि पेडनेकर को हमने बहुत से देसी अवतारों में देखा है। ऐसे किरदार निभाना मानो उनकी खासियत है और इस बार भी उन्होंने बेमिसाल काम किया है। वहीं मुझे नहीं लगता कि अभी तक कोई ऐसा रोल बना है, जिसे तापसी पन्नू ना निभा पाएं।


फिल्म की मजबूत कड़ी –
नारी सशक्तिकरण, मोटिवेशनल और ग्रामीण परिवेश की फिल्में पसंद हों तो पूरे परिवार के साथ इस फिल्म को देख सकते हैं। इसके अलावा डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी ने इस फिल्म को बहुत अच्छे से बनाया है। फिल्म आपको पहले सीन से अपने साथ बांध लेती है और फिर आप उसके साथ चलते जाते हैं। इसकी एडिटिंग बहुत क्रिस्प है और आपको एक भी बार ऐसा नहीं लगता है। पहले सीन से लेकर आखिरी सीन तक आप अपनी सीट पर जमे रहते हैं। फिल्म अलग-अलग इमोशन्स से भरी हुई है और अंत तक आते-आते आपकी आंखों से आंसू छलक ही जाते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड और गाने बहुत अच्छे हैं।


कमजोरी –

सिर्फ एक चीज आपको खटक सकती है वो है तापसी और भूमि का मेकअप। उसके अलावा छोटी-मोटी कमियां आप आराम से नजरअंदाज कर सकते हैं। तो कुल-मिलाकर फिल्म सांड की आंख को आपको जरूर देखना चाहिए क्योंकि ये फुल पैसा वसूल फिल्म है, जो आपको बढ़िया चीजें सिखाती है।

कुल मिलाकर सांड की आंख एक ऐसी फिल्म है जो आपकी जिंदगी में प्रेरणा भर देगी। भले ही आप किसी भी उम्र के क्यों ना हो। सांड की आंख परिवार के साथ जरूर देखी जानी चाहिए। पुणे समाचार की ओर से इस फिल्म को 4 स्टार दिए जाते है।

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