सामना ने कहा, नाटक कर रही है मोदी सरकार 

मुंबई . ऑनलाइन टीम : फ़िलहाल चाहे किसान हो या केंद्र सरकार – दोनों पक्ष अपने-अपने पक्ष को लेकर खड़े हैं। जानकार इसे सुलझाने की लगातार मांग करते आ रहे हैं। कुछ ने यहां तक कहा कि सरकार एक चौथा बिल या नया क़ानून लेकर आए, जो ये कहे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे ख़रीद नहीं होगी। इससे किसानों को न्यायिक अधिकार मिल जाएगा। ऐसा करने से सरकार को तीनों बिल वापस नहीं लेने होंगे। इससे दोनों पक्षों की बात भी रह जाएगी, तो कुछ का कहना है कि केंद्र सरकार ने शुरुआत में थोड़ी सी ग़लती ये कर दी। उन्हें नए कृषि क़ानून बनाते समय एक क्लॉज़ डाल देना चाहिए था कि ये क़ानून अमल में उस तारीख़ से आएगा, जब उसका नोटिफ़िकेशन जारी होगा, जो हर राज्य के लिए अलग भी हो सकता है। और राज्यों सरकारों पर ये बात छोड़ देते कि वो कब से अपने राज्य में इस क़ानून को लागू करना चाहते है। इससे सारी समस्या ही हल हो जाती।

जानकारों के विपरीत राजनीतिक दल मोदी सरकार को सुझाव देने के बजाये कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक लेख के जरिए किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। सामना में शिवसेना ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार किसान से चर्चा करने का नाटक कर रही है। आठ दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई नतीजा क्यों नहीं निकला है। इसका मतलब यह है कि सरकार को इसमें कोई रस नहीं है। सरकार की यही राजनीति है कि किसान आंदोलन यूं ही चलता रहे।

सामना के अनुसार, किसानों को डर है कि नए कृषि कानून से उनके व्यवसाय कॉरपोरेट कंपनियों के हाथ में चले जाएंगे। नए कृषि कानून के तहत किसानों को फंसाया जा रहा है। पंजाब और हरियाणा के रिलायंस जियो कंपनी के टावर्स को किसानों ने तोड़-फोड़ डाला। इसके बाद रिलायंस कंपनी की ओर से तर्क आता है कि उन्हें खेती-बाड़ी में कोई रस नहीं है। यह सच है कि उन्हें रस नहीं आ रहा, इसलिए तो मामला नीरस बनता जा रहा है। दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और ऊपर से तीन दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही है। किसानों के तंबुओं में पानी घुस गया और उनके कपड़े और बिस्तर भी भीग गए हैं। इसके बाद भी किसान पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे हैं, लेकिन सरकार को इसमें रस नजर नहीं आता। आंदोलन की वजह से दिल्ली सीमा पर 50 किसानों की मौत हो गई है, पर अभी सरकार को रस नहीं आ रहा। अरे,  अगर सरकार में थोड़ी भी इंसानियत होती तो कृषि कानून को तात्कालिक रूप से स्थगित करवाती और किसानों की जान से खेलने वाले इस खेल को रोकती।