रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह का निधन, आखिरकार कोरोना से हार गए

ऑनलाइन टीम. नई दिल्ली : राष्ट्रीय लोकदल सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह (82) नहीं रहे। गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में उन्होंने गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली। फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण उनकी हालत नाजुक हो गई थी। वे 20 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए थे।

अजित सिंह के निधन की ख़बर उनके बेटे जयंत चौधरी ने ट्विटर पर दी। जयंत चौधरी ने ट्विटर   संदेश में लिखा है, ”20 अप्रैल को चौधरी अजित सिंह कोविड संक्रमित पाए गए थे। उन्होंने आख़िरी दम तक कोरोना से लड़ा और 6 मई की सुबह आख़िरी सांस ली। अपने पूरे जीवन में चौधरी साहब ने प्यार और आदर ख़ूब कमाया।”

जयंत ने लिखा है, ”चौधरी साहब ने सबको अपना परिवार माना और लोगों की चिंता ही उनके मन में रही। इस महामारी काल में आप सबसे प्रार्थना है कि अपना ध्यान रखें। संभव हो तो अपने घर पर ही रहें और सावधानी बरतें। इससे कोरोना की जंग में लगे डॉक्टरों को मदद मिलेगी और यही चौधरी साहब की असली श्रद्धांजलि होगी।”

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह की गिनती बड़े जाट नेताओं में होती थी। 12 फरवरी 1939 को जन्मे चौधरी अजित सिंह ने अपने सियासी सफर की शुरुआत 1986 में की थी।  1986 में राज्यसभा भेजे गए थे। इसके बाद 1987 से 1988 तक वह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के इकलौते बेटे अजित का राजनीतिक जीवन का आख़िरी हिस्सा बहुत ही मुश्किल भरा रहा। 2014 में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के उभार के बाद वो लोकसभा सांसद का चुनाव तक नहीं जीत पाए। कहा जाता है कि उनके राजनीति जीवन का 2014 के बाद सबसे बुरा दौर रहा। 2014 के बाद उनकी पार्टी पर ये भी दबाव रहा कि वो अपनी पार्टी का किसी बड़े दल में विलय कर दें।

1960 के दशक से उनके पिता चरण सिंह और उनकी मृत्यु के बाद अजित जाटों के एकमात्र नेता रहे। चौधरी चरण सिंह ने जाटों के साथ मुसलमान, गुर्जर और राजपूतों का समर्थन जुटाकर ‘मजगर’ का चुनावी समीकरण बनाया था लेकिन अजित सिंह इस समीकरण को लंबे समय तक कायम नहीं रख पाए थे। अजित सिंह लगभग सरकारों में मंत्री बने। चाहे वह 1989 में वीपी सिंह की सरकार हो या 1991 में नरसिंह राव सरकार। 1999 की वाजपेयी सरकार हो या फिर 2001 की मनमोहन सिंह सरकार।

अजित सिंह ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की थी। विदेश में 15 साल नौकरी भी की। लेकिन चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने की जिम्मेदारी अजित के कंधों पर आ गई थी। 1989 में अपनी पार्टी का विलय जनता दल में करने के बाद वह उसके महासचिव बन गए। 1989 में अजित सिंह पहली बार बागपत से लोकसभा पहुंचे। वीपी सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। इसके बाद वह 1991 में फिर बागपत से ही लोकसभा पहुंचे। इस बार नरसिम्हाराव की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। 1996 में वह तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे, लेकिन फिर उन्होंने कांग्रेस और सीट से इस्तीफा दे दिया।

1997 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की और 1997 के उपचुनाव में बागपत से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1998 के चुनाव में वह हार गए, लेकिन 1999 के चुनाव में फिर जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2001 से 2003 तक अटल बिहारी सरकार में चौधरी अजित सिंह मंत्री रहे। 2011 में वह यूपीए का हिस्सा बन गए।

2011 से 2014 तक वह मनमोहन सरकार में मंत्री रहे। 2014 में वह बागपत सीट से चुनाव हार गए। 2019 का चुनाव  चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर से लड़े, लेकिन बीजेपी प्रत्याशी संजीव बलियान ने उन्हें हरा दिया।