Pune Covaxin | पुणे में अगस्त में कोवैक्सीन के निर्माण की शुरुआत, कारखाने को मिली सारी अनुमति

पुणे (Pune News) : मांजरी इलाके (Pune Covaxin) में कोवैक्सीन निर्माण परियोजना (Covaxin Manufacturing Project) का काम अंतिम चरण में पहुंच गया है। सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और कोवैक्सीन (Pune Covaxin) का उत्पादन वास्तव में अगस्त के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाएगा। संबंधित विभागों से सभी आवश्यक अनुमतियां प्राप्त कर ली गई हैं। भारत बायोटेक (Bharat Biotech) के अधिकारियों ने भी परियोजना का निरीक्षण किया है। अगस्त के अंत में टीकाकरण उत्पादन (vaccination production) का काम शुरू होगा।

 

विदर्भ में होना था कोवासिन प्रोजेक्ट, अजित पवार इसे पुणे ले आए, बीजेपी का आरोप

 

भारत बायोटेक कंपनी (Bharat Biotech Company) को कोवैक्सीन ( Covaxin) के उत्पादन के लिए नागपुर (Nagpur) के मिहान में एक परियोजना शुरू करनी थी। हालांकि, उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Ajit Pawar) ने अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करते हुए इस परियोजना को पुणे (Pune) लेकर आ गए, ऐसा आरोप भाजपा विधायक कृष्णा खोपड़े (Krishna Khopde) ने लगाया था। कृष्णा खोपड़े पूर्वी नागपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं।

 

सीरम (Serum) और भारत बायोटेक (Bharat Biotech) को मिहान में आमंत्रित किया गया था। हालांकि, अजित पवार ने ऐन वक्त पर अपने राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करते हुए भारत बायोटेक परियोजना को पुणे ले आए।उन्होंने कहा था कि यह विदर्भ के साथ यह अन्याय है।

 

पुणे के मांजरी इलाके में भारत बायोटेक फैक्ट्री

 

भारत बायोटेक की अनुषंगी कंपनी बायोटेक ने पुणे (Pune) जिले के मंजरी खुर्द इलाके में 12 हेक्टेयर जमीन पर कोवैक्सीन फैक्ट्री (Covaxin Factory) की स्थापना की है।

 

कर्नाटक स्थित बायोवेट कंपनी ने मांजरी खुर्द कारखाने में वैक्सीन (Vaccine) के निर्माण की अनुमति देने के लिए महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government ) से आदेश की मांग करते हुए उच्च न्यायालय (High Court) का रुख किया था। 1973 से इस जगह का उपयोग इंटरवेट इंडिया, एक बहुउद्देशीय कंपनी और इसकी सहायक कंपनी मर्क एंड कंपनी द्वारा किया जा रहा है। कंपनी ने इस फैक्ट्री को ट्रांसफर करने के लिए बायोटेक के साथ समझौता किया था।

 

बायोटेक ने हस्तांतरण के लिए राज्य सरकार (State Government) से अनुमति मांगी थी। उस समय वन एवं संरक्षण अधिकारी ने भूमि को वन क्षेत्र के रूप में संरक्षित किया था और 1973 में भी इसे गलत तरीके से हस्तांतरित किया गया था। इस ओर ध्यान खींचते हुए भूमि को हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया था। इसलिए बायोवेट ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

 

उस समय राज्य सरकार की ओर से तर्क देते हुए महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने अदालत से कहा कि कंपनी को निश्चित रूप से जीवन रक्षक टीके बनाने की अनुमति दी जाएगी।

 

लेकिन कंपनी को जमीन पर स्थायी कब्जा लेने पर विचार नहीं करना चाहिए, ऐसा कुंभकोणी ने कहा था।

 

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