अदालत के सख्त तेवर से सरकार और विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल को छूटे पसीने – कहा 2 सप्ताह में विदर्भ के सिंचाई प्रकल्पों की वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट सबमिट करें

नागपुर : समाचार ऑनलाइन – विदर्भ में सिंचाई प्रकल्पों को लेकर दशकों से हंगामा होता आ रहा है। किसी सरकार पर अनुशेष पूरा नहीं करने का आरोप मढ़ा गया तो किसी पर क्षेत्र विशेष के साथ सौतेलापन का। समय-समय पर अदालत में भी दिशा-निर्देश जारी किए। अब अदालत यह जानना चाहती है कि विदर्भ में कितने सिंचाई प्रकल्पों का कार्य पूरा हो चुका है अौर कितने प्रकल्प अभी अधूरे पड़े हैं? इसकी रिपोर्ट 2 सप्ताह में प्रस्तुत करने का अादेश उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने राज्य सरकार और विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल को दिया।

शपथ-पत्र में यह कहा महामंडल ने :
– दिसंबर 2012 तक 45 प्रकल्पों में से टाइप-1 के 38 प्रकल्पों को वन विभाग की अंतिम मंजूरी मिल चुकी थी। उसमें 13 प्रकल्प पूरे हो चुके थे, जबकि 25 प्रकल्पों का कार्य चल रहा है।
-टाइप-2 के 18 प्रकल्पों में करजखेड़ा, काटेपर्णा बैराज व पारवा कोहार का काम जून 2019 तक पूरा करने, भीमलकसा का काम दिसंबर 2019 पूरा करने, पिंडकेपार, नीमगांव, वर्धा बैराज, कन्हान नदी, जयपुर व भीमाड़ी प्रकल्प का काम जून 2020 में पूरा करने का लक्ष्य है।
-वासानी, धाम रेजिंग व खर्डा प्रकल्प का काम जून 2021 में पूरा करने, जीगाव का काम जून 2023 में पूरा करने, डिंगोरा बैराज व आजनसरा बैराज का काम जून 2024 में पूरा करने, निम्न पैनगंगा प्रकल्प का काम 2044 तक पूरा करने का लक्ष्य लिया गया है।
-टाइप-3 के 19 प्रकल्पों में इंगलवाड़ी, शेगांव का काम जून 2019, पेंच रापेरी और पांगराबंधी का काम जून 2020 पूरा करने, चंद्रभागा बैराज व पाटिया का काम जून 2021 पूरा करने, चिचघाट प्रकल्प का काम जून 2024 पूरा करने का लक्ष्य रखा है।

अदालत के तेवर इसलिए कड़े
न्यायाधीश रवि देशपांडे और न्यायाधीश अमित ने अधूरे पड़े प्रकल्पों की वर्तमान स्थिति 2 सप्ताह में प्रस्तुत करने का आदेश किया। बता दें कि विदर्भ के कई सारे सिंचाई प्रकल्प अधूरे पड़े हुए हैं। उनको पूरा करने को लेकर लोकनायक बापूजी अणे स्मारक समिति द्वारा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई है। मामले को लेकर सरकार ने एक साल पहले वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।