राजनीतिक बिसात…ममता को एक और झटका देने की तैयारी में भाजपा  

नंदीग्राम. ऑनलाइन टीम : विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। नतीजा,  ममता बनर्जी की मुश्किलें लगातार बढञती जा रही हैं।  बीजेपी ने अपने अभियान में युद्ध स्तर पर तेजी लाते हुए केंद्रीय मंत्रियों, एक उप-मुख्यमंत्री और कई केंद्रीय नेताओं को विभिन्न मोर्चों पर तैनात किया है और उन्हें छह से सात संसदीय क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी है।  ममता बनर्जी को इस कारण दो मोर्चे पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है। एक तरफ केंद्र से भेजे जा रहे नेताओं को जवाब देना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ अपने ही गढ़ को बचाने के लिए अपनों को एकजुट रखने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। ममता बनर्जी इधर से बचाव करती हैं, तो भाजपा उधर से वार कर रही है और उधर ध्यान दे रही हैं, तो किसी और तरफ से वार हो रहा है।

अभी फिर एक झटका बीजेपी की ओर से दिया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए सुवेंदु अधिकारी ने बताया कि उनके भाई और तृणमूल नेता सौमेंदु अनेक कार्यकर्ताओं के साथ बीजेपी में शामिल होंगे। सौमेंदु को हाल ही में कोन्टाई नगरपालिका के प्रशासक पद से हटा दिया गया था। सुवेंदु ने पूर्व मेदिनीपुर में एक बैठक में कहा कि सौमेंदु कुछ पार्षदों और तृणमूल कांग्रेस के 5,000 कार्यकर्ताओं के साथ दिन में भगवा पार्टी में शामिल होंगे। उन्होंने दावा किया कि तर्णमूल कांग्रेस जल्द ही ढह जाएगी। सुवेंदु अधिकारी ने बताया कि अब बंगाल के हर घर में कमल खिलेगा।

जानकार बताते हैं कि ममता बनर्जी अपने मनमाने तौर-तरीकों से अपना ही नुकसान कर रही हैं। आखिर राजनीतिक विरोधियों के प्रति असहिष्णुता दिखा रहा कोई नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना कैसे देख सकता है? अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति ममता का असहिष्णु रवैया कुल मिलाकर उन वामदलों की ही याद दिला रहा है, जिनके कठोर शासन से उकता कर लोगों ने ममता बनर्जी को सत्ता सौंपी थी। वह तो वाम दलों को भी मात दे रही हैं।

वह भाजपा और मोदी सरकार के प्रति इस हद तक असहिष्णुता से भरी हुई हैं कि केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को ठुकराने के साथ ही केंद्रीय एजेंसियों के प्रति भी दुर्भावना का प्रदर्शन करने में लगी हुई हैं। ममता बनर्जी अपने मनमाने आचरण से यही दर्शा रही हैं कि सत्ता में आने के बाद कुछ नेता किस तरह बेलगाम हो जाते हैं। इस पर यकीन करना कठिन है कि यह वही ममता बनर्जी हैं जो संघीय ढांचे की रक्षा के लिए चिंता जताया करती थीं। उनकी सरकार का रवैया तो संघीय ढांचे की मूल भावना पर ही प्रहार करने वाला है।