जल्लीकट्टू के आयोजन को अनुमति, लेकिन कोरोना नियमों का करना होगा पालन

चेन्नई. ऑनलाइन टीम 

तमिलनाडु सरकार ने कोरोना वायरस महमारी के कारण कुछ पाबंदियों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन को अनुमति दे दी है, लेकिन इस दौरान समारोह में 150 से ज्यादा लोग शामिल नहीं होंगे। साथ ही खिलाड़ियों का कोरोना वायरस का निगेटिव रिपोर्ट होना भी अनिवार्य है। आयोजन स्थल पर दर्शकों की कुल क्षमता के केवल 50 फीसद लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति होगी।
जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है। ऐसा माना जाता है कि “जल्लीकट्टू”खेल की शुरूआत तमिल शास्त्रीय काल अर्थात 400-100 ई. पू. के दौरान हुआ था| यह खेल प्राचीन “अय्यर” लोग जो प्राचीन तमिल प्रदेश की “मुल्लै” नामक भाग में रहते थे, के बीच काफी प्रचलित था।

पेटा इंडिया द्वारा याचिका दायर पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। दरअसल इस महोत्सव को लेकर एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें दिखाया गया था कि महोत्सव से पहले सांडो को शराब पिलाई जाती है। साथ ही दौड़ शुरू होने से पहले सांडो को बुरी तरह से मारा जाता है जिसके कारण जब दौड़ शुरू होती है तो वो गुस्से में बेतहाशा दौड़ते हैं।इस वीडियो को संज्ञान में लेते हुए “एनीमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया”, “पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया और बैंगलोर के एक एनजीओ ने इस दौड़ को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी| इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 2014 को “जल्लीकट्टू महोत्सव” पर रोक लगा दी थी। इसका काफी विरोध हुए। लोग सड़क पर उतर आए, जिसके बाद राज्य सरकार एक अध्यादेश पास करके इसके आयोजन को अनुमति दे दी।

यह पोंगल के समय फसलों की कटाई के समय आयोजित होता है। यह 400 साल पुराना खेल है। इस दौरान सांड़ों भड़काकर की सीगों में सिक्के या नोट फंसा दिए जाते हैं। फिर उन्हें भीड़ में छोड़ दिया जाता है। लोगों को इन्हें काबू में करना होता है। सांड़ों के तेज दौड़ने के लिए उनकी आंखों में मिर्च डालने से लेकर उनकी पूंछों को मरोड़ा जाता है।