ओवैसी को पश्चिम बंगाल में जोर का झटका, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष अब ममता के साथ 

कोलकाता. ऑनलाइन टीम : एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी को पश्चिम बंगाल के राजनीतिक दंगल में शुरूआत में ही पटखनी मिली है। वे बड़ी उम्मीदों के साथ हिंदुस्तान में पांव पसारने की फिराक में यहां कमर कस कर चुनावी आखाड़े में उतरना चाहते हैं, लेकिन राज्य के कार्यकारी पार्टी प्रदेशाध्यक्ष एसके अब्दुल कलाम ने उन्हें जोरदार झटका दिया है। वे सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। यही नहीं,  अब्दुल कलाम के साथ पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं ने भी ममता बनर्जी की पार्टी का दामन थाम लिया।

उन्होंने तल्ख शब्दों में कहा कि “जहरीली हवा” को दूर रखने के पार्टी बदली है।  यह अपने आप में बड़ा बयान है, जिसमें उन्होंने ओवैसी की पार्टी को जहरीली हवा से नवाजा है। एसके अब्दुल कलाम ने कहा कि हमने देखा है कि पश्चिम बंगाल शांति का नजारा हुआ करता था। लेकिन देर से ही सही यहां की हवा जहरीली हो गई है और इसे ठीक करना है। इसीलिए मैंने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का फैसला किया।   मैंने बांकुरा, मुर्शिदाबाद, कूचबिहार और मालदा जैसे जिलों की यात्रा की है और वहां के लोगों से बात की है। इन सभी ने कहा कि यह जहरीली हवा है।  कोलकाता में टीएमसी मुख्यालय में पार्टी में शामिल होने के बाद कलाम ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कई वर्षों से शांति और अमन का माहौल है।

हालांकि देखा जाए तो विधानसभा चुनाव से पहले ओवैसी को यह पहला झटका नहीं है। नवंबर में  उनके प्रमुख नेता अनवर पाशा ने भी अपने समर्थकों के साथ ममता की पार्टी का दामन थाम लिया था। अनवर का दावा था कि ओवैसी की पार्टी भाजपा को सिर्फ वोटों का ध्रुवीकरण करने में मदद करेगी।

ओवैसी पिछले रविवार ही पश्चिम बंगाल पहुंचे थे। उन्होंने यहा प्रमुख मुस्लिम नेता अब्बास सिद्दिकी से मुलाकात कर राज्य की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की थी। खास बात है कि राज्य में 100-110 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओवैसी की पार्टी के चुनावी समर में उतरने से  सीधा नुकसान ममता बनर्जी की पार्टी को हो सकता है, लेकिन फलहाल नुकसान ओवैसी को ही हुआ है।

बिहार में ओवैसी की पार्टी ने अल्पसंख्यक वोटों में सेंध लगा कर बीजेपी को सत्ता हासिल करने में मदद की है। लेकिन बिहार और बंगाल के मुसलमानों में काफी फर्क है। ओवैसी को यहां वैसी कामयाबी नहीं मिलेगी। माना जा रहा है कि ओवैसी का असर हिंदी और उर्दूभाषी मुसलमानों पर तो कुछ असर है। लेकिन बांग्ला भाषियों पर उनका कोई असर नहीं होगा। राज्य सरकार में मंत्री और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष सिद्दीकुला चौधरी दावा करते हैं कि बंगाल के मुसलमान राजनीति तौर पर काफी सचेत और परिपक्व हैं। वे किसी बाहरी पार्टी और बीजेपी की बी टीम का समर्थन नहीं करेंगे।