OMG ! अब ये इंडस्ट्री तबाह होने के कगार पर  

नई दिल्ली : समाचार ऑनलाईन – पोल्ट्री साइंस के अनुसार आयुर्वेदिक मुर्गी व अंडा जैसा कुछ नहीं होता है, लेकिन दुनिया में ऑर्गेनिक, एंटीबॉयोटिक फ्री, नॉन जीएमओ जैसे चिकन व अंडा मिल रहा है, लेकिन मुर्गे के खाने मक्का के भाव बढ़ जाने की वजह से पोल्ट्री इंडस्ट्री संकट में आ गई है। यह जानकारी जानकार सूत्रों ने दी। ग्राहकों के रिस्पांस के हिसाब से विकसित देशों में इस तरह के उत्पादन का ट्रेंड बढ़ रहा है। देशी खाना खाने वाली देशी ब्रीड के मुर्गे से ऑर्गेनिक चिकन व अंडा मिल सकता है।

मुर्गे की संख्या बढ़ाने को एंटीबॉयोटिक फ्री माना जाता है 
इंडस्ट्रियल व कमर्शियल पोल्ट्री उत्पादन प्रक्रिया में एंटीबॉयोटिक का इस्तेमाल न करते हुए मुर्गे की संख्या बढ़ाने को एंटीबॉयोटिक फ्री माना जाता है या एंटीबॉयोटिक की मात्रा मानव के प्रतिकारोधक क्षमता को चोट न पहुंचाए इस मात्रा में दिए गए उत्पादन को एंटीबॉयोटिक रेसीड्यू फ्री माना जाता है। इस क्षेत्र के अध्ययनकर्ता दीपक चव्हाण ने कहा कि करीब 23 करोड़ अंडा और 2 करोड़ किलो चिकन की इस देश प्रतिदिन जरूरत है। मक्का मुर्गे का मुख्य भोजन है। पोल्ट्री फॉर्म का 80 फीसदी खर्च मक्का और सुविधाओं पर होता है। इस वर्ष देश के मक्के की फसल पर अमेरिकन लष्कर इल्ली का प्रादुर्भाव हुआ है। महाराष्ट्र सहित देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों में मक्के की फसल संकट में आ गई है। यही वजह है कि इसका बाजार भाव काफी ऊंचा है। यह 2300 से 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर तक पहुंच गया है। वर्ष भर में मक्के की कीमत दोगुनी हो गई है। पोल्ट्री फॉर्म को आने वाले दिनों में अगर कच्चा माल नहीं मिलता है तो खाद्य सुरक्षा पर सवाल खड़े हो जाएंगे।

मक्के की कीमत बढ़ने पर उत्पादन का खर्च बढ़ेगा
क्योंकि अगर मक्का नहीं मिलता है तो मुर्गे कैसे जिंदा रहेंगे। मक्के की कीमत बढ़ने पर उत्पादन का खर्च बढ़ेगा। आज ब्रॉयलर्स प्रति किलो पर उत्पादन खर्च 80 रुपए है। जबकि फॉर्म लिफ्टिंग बाजार भाव 60 रुपए प्रति किलो है। अंडों का प्रति किलो उत्पादन 4 रुपए तक पहुंच गया है। पिछले कई महीनों में औसतन फॉर्म लिफ्टिंग बाजार भाव तीन रुपए के आसपास है। पोल्ट्री इंडस्ट्री की कमर टूट गई है। महाराष्ट्र में मक्के पर अमेरिकन लष्करी इल्ली का सबसे अधिक प्रादूर्भाव है। आधी फसल बर्बाद हो गई है।