BIG BREAKING : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, RTI कानून के दायरे में आएगा CJI का दफ्तर

नई दिल्ली, 13 नवंबर : देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट भी अब RTI या सूचना के अधिकार के दायरे में आ गई है. इसके बाद देश के चीफ जस्टिस (CJI) के ऑफिस पर भी अब यह कानून लागू हो गया है. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने आज (बुधवार) यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उक्त बेंच ने यह फैसला सुनाया. इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि, कुछ शर्तों के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस का ऑफिस RTI के दायरे में आएगा.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस जे. खन्ना, जस्टिस गुप्ता, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस रम्मना वाली पीठ ने इस फैसले को पढ़ा था. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 124 के तहत इस फैसले को लिया है.

मिल रही रिपोर्ट्स के मुताबिक RTI के तहत सुप्रीम कोर्ट की क़ानूनी प्रक्रिया से संबंधित मामले नहीं आएँगे, बल्कि प्रशाशनिक कार्य से संबंधित जानकारियां ही RTI के तहत दी जा सकेगी. साथ ही कोर्ट की निजता और गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाएगा.

संवैधानिक बेंच ने यह कहा …

मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि, ‘कोई भी अंधेरे की स्थिति में नहीं रहना चाहता या किसी को अंधेरे की स्थिति में नहीं रखना चाहता. आप पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं कर सकते.’

क्या था हाईकोर्ट का फैसला?
बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 10 जनवरी 2010 को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई कानून के दायरे में आता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.

कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उस पर एक जिम्मेदारी है.

ऐसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा यह केस…

बता दें कि साल 2007 में एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने जजों की संपत्ति जानने के लिए एक RTI दायर की थी. लेकिन इसे ख़ारिज कर दिया गया था. इसके बाद यह मामला केंद्रीय सूचना आयुक्त ले जाया गया. पश्चात इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, यहां भी आदेश को बरकरार रखा गया.

इसके बाद साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट के जनरल सेक्रेटरी और सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी हाईकोर्ट ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.