कोरोनाकाल में शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम को 

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम को कोरोनाकाल में शांति के नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। 2019 में विश्व खाद्य कार्यक्रम ने 88 देशों के करीब 10 करोड़ लोगों को तकरीबन 42 लाख मीटिक टन भोजन और 1.2 बिलियन डॉलर नकद मदद सहायता प्रदान की। नोबेल समिति की मानें, तो विश्व खाद्य कार्यक्रम इन्हीं असाधारण कार्यों के लिए नोबेल से सम्मानित किया गया है। नोबेल पुरस्कार कमेटी के मुताबिक यमन, कांगो गणराज्य, नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और बुर्किनाफासो जैसे देशों में हिंसक संघर्ष और महामारी की दोहरी मार से भुखमरी के कगार पर रहने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, लेकिन इस दौरान विश्व खाद्य कार्यक्रम ने अपने प्रयासों को तेज कर एक प्रभावशाली क्षमता का प्रदर्शन किया है।
विश्व खाद्य कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय कार्यक्रम है। गिनीज वर्ल्र्ड रिकॉर्डस की मानें, तो विश्व खाद्य कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय कार्यक्रम है। इससे इतर विश्व खाद्य कार्यक्रम 2030 तक दुनिया में भूख को खत्म करने के अपने वैश्विक लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख ने इस अवसर पर कहा है कि एजेंसी को मिले नोबेल शांति पुरस्कार ने यह सामर्थ्य दिया है कि वह विश्व भर के नेताओं को आगाह कर सके। उन्होंने कहा कि अगला वर्ष इस वर्ष की तुलना में और खराब होगा और अगर अरबों डॉलर की सहायता अगर नहीं मिली तो ‘2021 में भुखमरी के मामले बेतहाशा बढ़ जाएंगे। अगर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो हालात खराब हो सकते हैं। हम इसे 2020 में टालने में सफल रहे क्योंकि वैश्विक नेताओं ने धन दिया, पैकेज दिए लेकिन जो धन 2020 में मिला वह 2021 में मिलने के आसार नहीं हैं, इसलिए वह लगातार आगाह कर रहे हैं।

जाहिर है विश्व खाद्य कार्यक्रम को शांति का नोबेल का एलान दुनिया में व्याप्त खाद्य असुरक्षा और भुखमरी की गंभीरता की तरफ इशारा कर रहा है। यह जमीनी स्तर से वैश्विक शासन के उच्चतम स्तर तक भूख और अकाल से लड़ने के निरंतर प्रयासों की ओर ध्यान आकर्षति करता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख ने कहा कि यह पुरस्कार बहुत सही वक्त पर मिला। अमेरिकी चुनाव और कोविड-19 महामारी की खबरों की वजह से इसे ज्यादा तवज्जो नहीं मिली। साथ ही दुनिया भर का ध्यान उस परेशानी की ओर नहीं गया, जिसका हम सामना करते हैं। उन्होंने सुरक्षा परिषद में अप्रैल माह में कही उस बात को याद किया कि विश्व एक ओर तो महामारी के जूझ रहा है और ‘यह भुखमरी के महामारी जैसे हालात के मुहाने पर भी खड़ा है।’