रिंग में हारकर भी ‘हक की लड़ाई’ की मिसाल बनीं निकहत

नई दिल्ली, 28 दिसम्बर (आईएएनएस)| तेलंगाना की युवा मुक्केबाज निकहत जरीन बेशक ओलम्पिक क्वालीफायर ट्रायल्स के फाइनल में छह बार की विश्व चैम्पियन मैरी कॉम से हार गईं लेकिन इसके बावजूद वह खेल जगत में ‘हक की लड़ाई’ की मिसाल बन गईं।

मैरी के साथ मुकाबले के लिए निकहत को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था। वह भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) के खिलाफ भी गईं और सफल भी रहीं। उन्हीं की जिद ने महासंघ को अपना फैसला बदलने और पुराने नियमों पर लौटने के लिए मजबूर कर दिया था।

निकहत की लड़ाई बीएफआई अध्यक्ष अजय सिंह के उस बयान से शुरू हुई थी, जिसमें उन्होंने नियमों को पलट मैरी कॉम को सीधे ओलम्पिक क्वालीफायर में भेजे जाने की बात कही थीं। यहां निकहत की भौहें तन गईं और उन्होंने फैसला किया कि वह महासंघ और दिग्गज मुक्केबाज के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगी जो उनसे उनका वाजिब हक छीनने में लगे हुए हैं।

दरअसल, रूस में खेली गई विश्व चैम्पियनशिप में मैरी कॉम ने 51 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य जीता था। इस जीत के बाद अजय सिंह ने मैरी कॉम को ओलम्पिक क्वालीफायर में सीधे भेजने की बात कही थी जो बीएफआई के नियमों के उलट थी। बीएफआई ने सितंबर में जो नियम बनाए थे उनके मुताबिक विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण या रजत पदक जीतने वाली खिलाड़ियों को ही ओलम्पिक क्वालीफायर के लिए डायरेक्ट एंट्री मिलेगी और जिस भारवर्ग में भारत की मुक्केबाज फाइनल में नहीं पहुंची हैं, उस भारवर्ग में ट्रायल्स होगी।

इस नियम के हिसाब से मैरी कॉम को ट्रायल्स देनी थी, लेकिन अजय सिंह के बयान के बाद वह सीधे ओलम्पिक क्वालीफायर में जाने की हकदार बन गईं। यही बात निकहत को अखरी और उन्होंने मुखर रूप से अपनी बात रखते हुए महासंघ को कठघरे में खड़ा कर ट्रायल्स आयोजित कराने की मांग की।

निकहत ने बीएफआई को पत्र में भी लिखा और मीडिया के सामने भी अपनी बात रखने से पीछे नहीं हटीं। उन्होंने खुले तौर पर मैरी कॉम को चुनौती दी थी। निकहत ने डटकर जो लड़ाई लड़ी उसका फल उन्हें मिला और बीएफआई अपने पुराने फैसले पर लौट आई। उसने अंतत: ट्रायल्स कराने का फैसला किया और निकहत ने अपने हक के लिए जो लड़ाई लड़ी थी, उसमें बीएफआई को झुकाकर जीत हासिल करने में सफल रहीं और मैरी कॉम को रिंग में उतरने पर मजबूर कर दिया।

एक बात यहां गौर करने वाली यह है कि महिलाओं के 51 किलोग्राम भारवर्ग में मैरी कॉम और निकहत ही नहीं हैं। इस भारवर्ग में पिंकी रानी, ज्योति गुलिया और रितू ग्रेवाल भी हैं। निकहत के अलावा पिंकी ने जरूर आईएएनएस से बातचीत में ट्रायल्स न होने पर नाराजगी जताई थी लेकिन इस भारवर्ग की बाकी और मुक्केबाज निकहत के समर्थन में नहीं आई थीं। निकहत अकेली महासंघ से ‘पंगा’ ले रहीं थी।

रिंग में बेशक मैरी कॉम ने अपने अनुभव और बेहतरीन खेल के दम पर निकहत को हरा दिया लेकिन इस लड़ाई में निकहत ने बता दिया कि वह लड़ने से पीछे नहीं हटेंगी।

इस दौरान मैरी कॉम और बीएफआई का रवैया भी अजीब ही रहा। जब निकहत ने ट्रायल्स की मांग की थी तब अधिकतर समय मैरी कॉम ने चुप्पी साध रखी थी। एक-दो मर्तबा उन्होंने मुंह खोला लेकिन ऐसा कुछ बोला जो उन्हें दिग्गज खिलाड़ी के तौर पर शोभा नहीं देता। मैरी कॉम ने एक अंग्रेजी समाचार चैनल पर साफ तौर पर यह कह दिया था-‘निकहत कौन है। मैंने विश्व चैम्पियनशिप में आठ पदक जीते हैं उन्होंने क्या जीता है।’

शनिवार को निकहत के साथ मुकाबले के बाद मैरी कोम बिना हाथ मिलाए ही रिंग से बाहर चली गईं। यह भी उनके अहम का प्रतीक है। मैरी एक सीनियर मुक्केबाज हैं और सालों से निकहत जैसी कई मुक्केबाजों के लिए आयडल रही हैं और ऐसे में उन्हें बड़प्पन का परिचय देते हुए निकहत से हाथ मिलाना चाहिए था।

मुकाबले के बाद मैरी ने कहा, ” मैं उससे (निकहत) से हाथ क्यों मिलाऊं। उसे सम्मान हासिल करने के लिए दूसरों का सम्मान करना चाहिए था। उसे खुद को रिंग में साबित करना चाहिए था न कि रिंग के बाहर। ” मैरी के इस बयान से साबित होता कि वह रिंग के बहर किसी भी खिलाड़ी की हक की लड़ाई को जायज नहीं मानतीं।

एक उभरती हुई मुक्केबाज की उपलब्धियों को इस तरह के नकार देना मैरी कॉम के अहम का परिचायक है। मैरी कॉम राज्य सभा सांसद भी हैं लेकिन जहां हक की बात आती है तो यह दिग्गज अपने मुंह पर उंगली रखकर इस तरह से मौनव्रत धारण कर लेती हैं कि मानो जुबान नहीं हो।

हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में उनके गृहराज्य सहित पूरे पूर्वोत्तर में भी कई तरह के विरोध प्रदर्शन हुए। पूरा पूर्वोत्तर चल रहा था। इस गंभीर मुद्दे पर राज्य सभा सांसद ने इस तरह का बेतुका बयान दिया जो उनकी संवेदनहीनता को साफ करता है। मैरी कॉम ने कहा, “मैं सीएए का समर्थन करती हूं क्योंकि अगर मैं विरोध करूंगी तो मेरी कोई सुनने वाला नहीं है।”

यहां मैरी कॉम शायद इरोम शर्मिला को भूल गई थीं, जिन्होंने सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम के खिलाफ अकेले लंबी लड़ाई लड़ी थी।

खैर, बेशक निकहत मुकाबला हार गई हैं और मैरी कॉम जीत गई हैं लेकिन मैरी कॉम की चुप्पी और निकहत की वाकपटुता ने अपने और दूसरों के लिए लड़ाई लड़ने में क्या अंतर होता है, वो साफ बता दिया है। निकहत की लड़ाई सिर्फ उनके लिए नहीं थीं बल्कि उस भारवर्ग में बाकी की मुक्केबाजों के लिए भी थी, जिनका सपना भी ओलम्पिक में खेलना और देश के लिए पदक जीतना है।

मैरी कॉम जीत के भी हार गईं और निकहत हार कर भी मिसाल बनकर जीत गईं।