दुश्मन को खदेड़ना होता है : ले. जनरल हुडा

पुणे :  समाचार ऑनलाइन – लगभग 17 हजार फीट ऊंचे पर्वत पर खड़े रहने पर सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, हर दस कदम पर रुकने का मन कर रहा हो, पैर में वजन बांधने जैसा एहसास हो रहा हो और ऊपर चढ़ते समय दुश्मनों की हजारों गोलियां बरस रही हों। ऐसी स्थिति में आपके साथी को गोली लगने से वह धराशायी हो रहा है, उस समय लक्ष्य से प्रेरित व समय आने पर प्राण न्यौछावर करने वाला देशप्रेमी इंसान ही आगे बढ़ सकता है। उस समय सैनिक के मन में ये सवाल नहीं उठते कि दिल्ली उचित है या इस्लामाबाद? क्या सरकार ठीक कर रही है? रण के समय सिर्फ दुश्मन को खदेड़ना ही टार्गेट होता है। लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) डी.एस. हुडा ने इन शब्दों में करगिल युद्ध व भारतीय जवानों की यशोगाथा का बखान किया। सरहद संस्था द्वारा बालगंधर्व रंगमंदिर में मंगलवार को आयोजित करगिल विजय दिवस समारोह में वे बोल रहे थे।

पूर्व गृहमंत्री के हाथों सम्मानित किया गया
इस दौरान पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे के हाथों पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) मोती धर को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। साथ ही दशरथ जाधव, काचो अहमद खान व राखी बक्शी सहित विभिन्न संस्थाओं को ङ्गकरगिल गौरव पुरस्कारफ से अलंकृत किया गया। इस मौके पर वरिष्ठ अभिनेता विक्रम गोखले, सरहद के संजय नहार, उद्यमी राकेश भान, करगिल मैरेथान के संजीव शहा आदि उपस्थित थे।

इस समर को 20 साल बीतने के बावजूद जवानों का संग्राम अब भी जारी है
करगिल युद्ध को बेहद खूनी बताते हुए उन्होंने कहा कि इस समर को 20 साल बीतने के बावजूद जवानों का संग्राम अब भी जारी है। उन्होंने बताया कि करगिल युद्ध के बाद द्रास, करगिल, बटालियन सेक्टर पर भारतीय जवान तैनात हैं। यहां जाने के लिए रास्ते नहीं हैं। नवंबर में ठंड पड़नी शुरू होने के बाद पीठ पर सामान बांधकर पहाड़ी की चढ़ाई करनी पड़ती है। महीने के आखिर में पर्वत की पोस्ट पर जाने के बाद 6 महीनों के पश्चात जून-जुलाई में ही नीचे उतरना पड़ता है। एक पोस्ट पर 8 से 12 जवान तैनात रहते हैं। न मोबाइल फोन और न इंटरनेट। भारी हिमपात होने पर भी सीमा पर पेट्रोलिंग करनी ही पड़ती है। इस वजह से करगिल विजय दिवस मनाते समय उन जवानों को याद करें, जिनके कारण हम सुरक्षित हैं।