केरल जैसी विपदा से बचने के लिए नई तकनीक 

नई दिल्ली। समाचार एजेंसी – केरल में बाढ़ से मचे हाहाकार के मद्देनजर इस तरह की विपदा से बचने के लिए भारतीय मौसम विभाग ने नई तकनीक विकसित की है। बारिश से नदियों और जलाशयों में पानी के स्तर में हुई वृद्धि का आकलन करने के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई है। इससे बारिश के प्रभाव को करीब से मॉनिटर करने में राज्य सरकारों को काफी मदद मिल सकती है।
ज्ञात हो कि अगस्त में केरल में हुई भारी बारिश के कारण 500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 40,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने विधानसभा में कहा था कि मौसम विभाग से बारिश की भविष्यवाणी को लेकर चूक हुई थी। मौसम विभाग ने 9 से 15 अगस्त के बीच राज्य में 98.5 मिमी बारिश का अनुमान जताया था लेकिन केरल में इस दौरान 352.2 मिमी बारिश दर्ज की गई।
सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भारतीय मौसम विभाग के प्रमुख केजे रमेश ने बताया कि ‘इम्पैक्ट बेस्ड फॉरकास्टिंग अप्रोच’ नामक नई तकनीक पहले ही सतर्क कर देता है। ऐसे में इस तकनीक से रियल टाइम में फैसले लेने में काफी मदद होगी। आगे क्या हो सकता है, इसका आकलन करना अहम होता है। ऐसे में हम पानी को रिलीज करने या न करने को लेकर फैसले ले सकते हैं। यह हर राज्य प्रशासन के लिए फैसले लेने में मददगार होगा।
हम पहले ही संभावित असर के मद्देनजर सिस्टम रन कर सकते हैं। हम इस तकनीक की सेवा लेने की स्थिति में पहुंच चुके हैं। उन्होंने यह भी माना कि केरल में भारी बारिश के कारण आई बाढ़ से जो नुकसान हुआ, वह जलवायु परिवर्तन का नतीजा था। नेचर पत्रिका के मुताबिक हर साल चक्रवात आने की संख्या 10 से बढ़कर 18 हो गई और तेज बारिश की मात्रा जो पहले 13 दिन के लिए थी अब 10 दिन हो गई है। उन्होंने कहा कि गर्म सागर खंडों के चलते ओखी चक्रवात के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सका। इसके बाद ही अक्टूबर में नई तकनीक को विकसित किया गया।
ओखी पिछले 40 सालों में आया पहला बड़ा चक्रवाती तूफान है जिसने बंगाल की खाड़ी से लेकर गुजरात के तट तक करीब 2400 किमी का सफर तय किया। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने केरल बाढ़ जैसी त्रासदी को रोकने के लिए बेहतर जल निकासी की योजना पर बल दिया। उन्होंने कहा, हर नदी, तालाब, धान के खेत और शहर का खाका तैयार होना चाहिए और उनकी हर हाल में सुरक्षा की जानी चाहिए। हर घर, संस्थान, गांव और शहर को बारिश के पानी को इकट्ठा करना चाहिए, जिससे बारिश को चैनलाइज्ड और रिचार्ज्ड किया जा सके।