कश्मीर में उभर सकता है नया अलगाववादी संगठन, राजनीति पर होगा फोकस

 

नई दिल्ली, 17 दिसम्बर (आईएएनएस)| कश्मीर में एक अलग राजनीतिक एजेंडे के साथ एक नया हुर्रियत कॉन्फ्रेंस उभर सकता है। अलगाववादी नेतृत्व के करीबी सूत्रों ने आईएएनएस को यह जानकारी दी।

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दो धड़े हैं। एक धड़े की अगुआई पाकिस्तान समर्थक सैयद अली शाह गिलानी करते हैं, वहीं दूसरे धड़े का नेतृत्व मीरवाइज उमर फारूक हैं, जो अपेक्षाकृत नरमपंथी है। मीरवाइज लगभग तीन दशकों से भारत विरोधी अलगाववादी आंदोलन की अगुआई कर रहे हैं।

सूत्रों ने कहा कि विभिन्न अलगाववादी और इस्लामिक संगठनों का गुट पांच अगस्त को नई दिल्ली द्वारा जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा छीने जाने के बाद से पूरी तरह अव्यवस्थित है। मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म करने के बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों -जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर राज्य को पुनर्गठित किया था।

हुर्रियत के करीबी सूत्र ने कहा, “हुर्रियत नेताओं को उम्मीद थी कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बढ़ा-चढ़ाकर दिए गए बयानों के अलावा उधर से कुछ ठोस बयान भी आएगा। लेकिन पाकिस्तान उन्हें फिलहाल चुप रहने के लिए बोल रहा है।”

श्रीनगर में एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि हुर्रियत नेता हिरासत में या नजरबंद रहेंगे।

उन्होंने कहा, “वे (अलगाववादी) उसी तरह हतोत्साहित और शांत हैं जैसे 1971 में भारत के साथ युद्ध के बाद पाकिस्तानी सेना थी। पाकिस्तान की तरफ से कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है। उन्हें यह नहीं पता कि अब उन्हें क्या करना है। इससे पहले पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की राजनीतिक व्यवस्था में संरक्षण मिलने के कारण उनके लिए माहौल अच्छा था। लेकिन टेरर-फंडिंग (आतंकवाद को वित्त पोषण करने) के सभी मामलों में कार्रवाई और अनुच्छेद 370 और 35ए के खत्म होने के बाद वे सशंकित हैं। उन्हें पता है कि किसी भी अवैध कार्रवाई के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। पहली बार उन्हें इस स्थिति का एहसास है।”

एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा कि वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान का फोकस कश्मीर तथा देश के शेष भाग में किसी नागरिक अशांति पर रहेगा।

उन्होंने कहा, “उन्होंने आतंकवादियों तक से शांत रहने के लिए कहा है। आतंकवाद से संबंधित कोई भी कार्रवाई कश्मीर पर पाकिस्तान के एजेंडे को खतरे में डाल देगी।”

मोदी सरकार की अगुआई में भारत को दुनियाभर में हिंदू फासीवादी राष्ट्र के तौर पर पेश कर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर मुद्दा उठाते रहे हैं।

प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी के एक युवा कार्यकर्ता ने अनंतनाग जिले में कहा, “इमरान खान द्वारा अपने बयान से कश्मीर में कई लोगों में उत्साह जगाने के बावजूद हुर्रियत की असफलता से कश्मीर के अलगाववादी युवाओं में निराशा और उदासी जन्मी है।”

हुर्रियत नेताओं के एक करीबी सूत्र ने कहा, “अलगाववादी युवाओं की सोच है कि पूरा हुर्रियत नेतृत्व, विशेष रूप से सबसे प्रभावशाली इस्लामिक नेता सैयद अली शाह गिलानी जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति को एक साथ रखने में असफल रहे हैं। उन्हें लगता है कि अलगाववादी आंदोलन में हुर्रियत द्वारा धर्म (इस्लाम) के इस्तेमाल का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वे अब नए प्रकार के हुर्रियत संगठन के नेतृत्व में ऐसा नया अलगाववादी आंदोलन लॉन्च करने वाले हैं, जो प्रकृति में पूरी तरह से राजनीतिक हो। आंदोलन का फोकस कश्मीरियत होगा न कि कश्मीरी मुस्लिम पहचान।”

कश्मीर में एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने हालांकि कहा कि इस दिशा में हालांकि कोई व्यवस्थित हरकत नहीं हुई है।

उन्होंने कहा, “खुफिया सूचना मिली है कि अलगाववादी अपनी पुरानी सभी रणनीतियों पर पुनर्विचार कर रहे हैं और कुछ ऐसा नया करने का सोच रहे हैं, जो उनके आंदोलन को गति प्रदान करे। अब कश्मीर के लिए इस्लामिक जिहाद के ज्यादा समर्थक नहीं बचे हैं। अब पाकिस्तान समर्थित, इस्लामिक स्टेट (आईएस) समर्थित अलगाववादी आंदोलन को ऊपरी तौर पर पर्याप्त समर्थन नहीं है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि किसी अलगाववादी आंदोलन से कुछ हासिल नहीं होगा। इसलिए जाहिर है कि वे इस बार कुछ अलग करेंगे।”