राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता संगीतकार वनराज भाटिया नहीं रहे 

ऑनलाइन टीम. मुंबई : सिनेमा जगत के लिए एक और बुरी खबर। हिंदुस्तानी और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत पर बराबर की पकड़ रखने वाले प्रसिद्ध संगीतकार वनराज भाटिया का शुक्रवार सुबह मुंबई में अपने आवास पर निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे। पिछले काफी समय से बुढ़ापे के कारण बीमारियों से जूझ रहे थे। वनराज इस समय अकेले अपने हाउस हेल्प के साथ मुंबई में रह रहे थे।

एक गुजराती परिवार में 31 मई 1927 में जन्मे वनराज भाटिया ने म्यूजिक की पढ़ाई लंदन के रॉयल अकैडमी ऑफ म्यूजिक से की थी। साल 1959 में वह भारत लौट आए और फिर उन्होंने यहीं पर काम करना शुरू कर दिया। वनराज ने सबसे पहले विज्ञापनों के जिंगल बनाने शुरू किए।  उन्होंने लगभग 7 हजार विज्ञापनों के जिंगल को म्यूजिक दिया था।

भाटिया को 1988 में टेलीविजन पर रिलीज हुई फिल्म ‘तमस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इसके अलावा सृजनात्मक व प्रयोगात्मक संगीत के लिए 1989 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 2012 में पद्मश्री पुरस्कार दिया था।

वनराज भाटिया का नाम घर घर पहुंचाने का काम दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ ने किया। इसके अलावा उन्होंने दर्जनों वृत्तचित्रों का संगीत दिया और ‘खानदान’, ‘वागले की दुनिया’ और ‘बनेगी अपनी बात’ जैसे धारावाहिकों का संगीत भी उन्होंने ही दिया।

साल 1960 से लेकर साल 1965 तक वनराज भाटिया दिल्ली विश्वविद्यालय में रीडर रहे और फिल्मों में उनकी शुरूआत हुई 1974 में रिलीज श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से।   मुख्यधारा की फिल्मों में अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अजूबा’, सनी देओल की फिल्म ‘दामिनी’ और शाहरुख खान की फिल्म ‘परदेस’ में भी उन्होंने योगदान दिया है।

उन्होंने जाने भी दो यारो, पेस्टॉनजी, तरंग, पर्सी, द्रोह काल जैसी फिल्मों का म्यूजिक देने के अलावा अजूबा, बेटा, दामिनी, घातक, परदेस, चमेली जैसी फिल्मों का बैकग्राउंड म्यूजिक भी दिया था। इसके अलावा वनराज ने खानदान, तमस, वागले की दुनिया, नकाब, लाइफलाइन, भारत- एक खोज और बनेगी अपनी बात जैसे टीवी सीरियलों का भी म्यूजिक दिया।