मुस्लिम पक्षों को अयोध्या विवाद मामले में न्याय की उम्मीद

नई दिल्ली (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाईन – सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या भूमि विवाद मामले के अंतिम चरण में प्रवेश करने के बाद विवाद में शामिल मुस्लिम पक्षों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मामले में ‘न्याय होगा।’ सुन्नी वक्फ बोर्ड के शकील अहमद ने आईएएनएस से कहा, “हम ज्योतिषी नहीं हैं, इसलिए हम फैसले की भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन हम कह सकते हैं कि दस्तावेजी प्रमाणों के आधार पर हमारा पक्ष बहुत मजबूत है। हमें उम्मीद और विश्वास है कि न्याय होगा।”

मामले में मुस्लिम पक्षों की ओर से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने कहा, “मैं फैसले के बारे में भविष्यवाणी नहीं कर सकता, लेकिन मैं कह सकता हूं कि हमारे प्रमाण और सुनवाई के दौरान उठाए गए हमारे तथ्य बहुत मजबूत हैं।”

यह बयान ऐसे समय आया है, जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपने अंतिम चरण में है, क्योंकि शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए 17 अक्टूबर की तिथि मुकर्रर की है।

इस महत्वपूर्ण सप्ताह में मुस्लिम पक्ष प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष अपना अंतिम पक्ष रखेंगे। पीठ में न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर शामिल हैं।

मामले में मुस्लिम पक्षों की ओर से पेश अधिवक्ता राजीव धवन ने हिंदू पक्षों के वकीलों द्वारा दिए गए हर तर्को के जवाब दिए हैं।

धवन के बहस के बाद, मुस्लिम पक्ष के मुकदमे पर हिंदू पक्ष के वकील संभवत: बुधवार को बीच में अपना पक्ष रखेंगे। इससे पहले अन्य पक्ष भी अपना बहस पूरा करेंगे, जिन्होंने मामले पर अभी तक अपना पक्ष नहीं रखा है।

2010 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आदेश दिया था कि विवादित भूमि को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच तीन अलग-अलग बराबर भागों में बांटा जाएगा। इस पीठ में न्यायमूर्ति एस.यू. खान, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति डी.वी. शर्मा शामिल थे।

न्यायमूर्ति खान ने तब हिंदुओं और मुस्लिमों द्वारा सदियों से एकसाथ पूजा करने की बेजोड़ परंपरा को रेखांकित किया था। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा था कि इमारत का आंतरिक प्रांगण हिंदू और मुस्लिम दोनों का है।

इसके अलावा बहुमत से दो अन्य निष्कर्ष निकले थे, जहां एक न्यायाधीश ने असहमति जताई थी, दो ने सहमति जताई थी। निष्कर्ष यह था कि विवादित ढांचा एक मस्जिद था और मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को तोड़ा गया था।

न्यायमूर्ति एस.यू खान ने अपने निर्णय में कहा था कि विवादित स्थल पर मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को तोड़ा नहीं गया था। उन्होंने कहा था कि मस्जिद बनाने का आदेश बाबर ने बहुत लंबे समय से राज्य में पड़े मंदिरों के खंडहरों पर दिया था।

visit : punesamachar.com