Mumbai High Court On Sameer Wankhede | वानखेडे की याचिका तत्काल सुनवाई के लिए आने से हाईकोर्ट नाराज

मुंबई: Mumbai High Court On Sameer Wankhede | एनसीबी (NCB) के तत्कालीन प्रादेशिक संचालक समीर वानखेडे (Sameer Wankhede) का बार लाइसेंस राज्य सरकार ने कैंसल (Bar license canceled) कर दिया है। उसे पूर्ववत करने के लिए वानखेडे ने उच्च न्यायालय में सोमवार को याचिका दी। उसके बाद इस याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय (Mumbai High Court) में लाया गया, जिससे अदालत  नाराज   हो गया। वानखेडे की याचिका (Mumbai High Court On Sameer Wankhede) इतनी जल्दी सुनवाई के लिए कैसे आई, ऐसा सवाल उठाया गया।

कोर्ट में याचिका दायर होने के तीन दिनों के बाद उस पर सुनवाई होती है, ऐसा नियम है। हालांकि वानखेडे की याचिका इतनी जल्दी हमारे सामने सुनवाई के लिए कैसे आई, ऐसा सवाल न्या. गौतम पटेल व न्या. माधव जामदार की खंडपीठ ने कोर्ट के कर्मचारी व वकील से किया। नियम के अनुसार आम लोगों की सुनवाई समय पर होगी और कोई प्रभावी     व्यक्ति हुआ तो तुरंत सुनवाई होगी क्या? न्याय व्यवस्था इसके लिए है क्या? ऐसा सवाल खंडपीठ ने उठाया।

समीर वानखेडे के बार का लाइसेंस ठाणे के जिलाधिकारी ने हमेशा के लिए रद्द किया है। वानखेडे नाम से संज्ञान न होने के बाद भी 17 वे साल बार का परमिट निकाला था। जांच में यह बात सामने आने पर लाइसेंस रद्द किया गया। इस कार्रवाई को समीर वानखेडे ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। सोमवार को याचिका दर्ज की गई और मंगलवार को सुनवाई के लिए अदालत में रखा गया। इससे जज नाराज हो गए। शराब के लाइसेंस पर इतनी जल्दी सुनवाई लेने की जरूरत क्या है? आज सुनवाई नहीं हुई तो आसमान गिर जाएगा क्या? ऐसा सवाल उठाते हुए वानखेडे की याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होगी।

वानखेड़े को गिरफ्तारी से तत्काल अंतरिम राहत

रेस्टोरेंट और बार में शराब बिक्री का परमिट मिलने के लिए 1997 में फर्जी कागजात व गलत निवेदन देने के मामले में ठाणे पुलिस ने एनसीबी के मुंबई के पूर्व संचालक समीर वानखेडे पर मामला दर्ज किया गया। इस मामले में 28 फरवरी तक गिरफ्तारी न करने का निर्देश उच्च न्यायालय ने पुलिस को दिया। पुलिस ने वानखेडे को समन भेजा है। इसके अनुसार उन्होने ठाणे पुलिस थाने में हाजरी लगाए और पुलिस को पूरा सहयोग करे, ऐसा न्या. एस.एस शिंदे व न्या. एन.आर. बोरकर की खंडपीठ ने निर्देश दिया।