राज्य में ढाई हज़ार से अधिक नवजात को लकवा मारा, मुंबई में 1209 मरीज 

मुंबई : समाचार ऑनलाइन – मस्तिष्क में ऑक्सीजन युक्त रक्त की सप्लाई करने वाली रक्तवाहनी में अचानक परेशानी आने से लकवा मार देता है. इस बीमारी का सही समय का इलाज नहीं किया गया तो मस्तिष्क की पेशिया स्थाई रूप से काम करना बंद कर देती है. इस वजह से मरीज की मौत भी हो सकती है. राज्य के हेल्थ विभाग से मिली जानकारी के अनुसार दो वर्षो में शून्य से पांच की उम्र के ढाई हज़ार से आदिक नवजात बालको को लकवा मारा जा चुका है.

राज्य में दो वर्षो में 2 हज़ार 579 नवजात बालको को लकवा मारने की जानकारी सामने आई हैं. इनमे मुंबई शहर में 1 हज़ार 209 बालक शामिल है. पुणे शहर में 356 , ठाणे में 132 बालको को लकवा मारा है।  इसके अलावा औरंगाबाद में दो वर्षो में एक भी बालक को लकवा नहीं मारा है. इन मरीजों के लिए शुरू के 2 से तीन घंटे को गोल्डन ऑवर माना जाता है.

इस विषय पर मस्तिष्क विशेषज्ञ डॉ. शैशवी कोरगांवकर ने कहा कि लकवा मारने का मतलब आधे अंगो का काम करना बंद कर देना होता हैं।  उम्र बढ़ने पर ऐसे  मरीजों को लकवा का झटका आता हो, ऐसा नहीं है. दुनिया में हर 6 में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी यह बिमारी होती है. हार्ट अटैक और कैंसर के बाद लकवा से दुनिया में मौत का तीसरा बड़ा कारण है. दिव्यांगता आने का यह पहला कारण है।  लकवा मारने के बाद मस्तिष्क का जो भाग ख़राब होता है उस तरफ का एक अंग काम क्रियाशील रहता है.