आर्कटिक में बर्फ के नीचे दबे हैं लाखों ‘हिम-दानव’, पिछलते ही दुनिया में लाएंगे तबाही   

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : अभी पूरी दुनिया सिर्फ एक कोरोना से चीत्कार उठी है, धरती के उत्तरी ध्रुव पर जमी बर्फ के नीचे असंख्य माइक्रोब्स, बैक्टीरिया और वायरस  दबे हैं। उसके पिघलते ही वे बाहर आ जाएंगे और मचेगी दुनिया में भारी तबाही।
हमारी धरती के ध्रुवीय इलाक़े बेहद सर्द हैं। धरती का तापमान संतुलित रखने और मौसमों में बदलाव में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों का भी बड़ा योगदान है। लेकिन, जलवायु परिवर्तन की वजह से ध्रुवों पर जमी बर्फ़ पिघल रही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि उत्तरी ध्रुव पर जमी बर्फ़ की परत हर साल सिकुड़ती जा रही है।

साल 2016 में उत्तरी ध्रुव के इर्द-गिर्द यानी आर्कटिक में जमी बर्फ़ का दायरा केवल 41.5 करोड़ वर्ग किलोमीटर रह गया था, जो 1970 के दशक के बाद से सबसे कम है। आर्कटिक की बर्फ़ की चादर की अहमियत इससे समझी जा सकती है कि, जब इस विशाल सफ़ेद चादर पर सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो वो रिफ्लेक्ट होकर, यानी इस बर्फ़ से टकराकर वापस आसमान की तरफ़ लौट जाती हैं। आर्कटिक क्षेत्र में एक विशाल बर्फ से ढका महासागर है (जिसे कभी कभी अटलांटिक महासागर का उत्तरी भाग भी माना जाता है), जिसके चारों ओर वनस्पतिविहीन पर्माफ्रोस्ट (स्थायीतुषार) उपस्थित है। हाल के वर्षों में समुद्र में बर्फ की मात्रा में कमी आई है।

इसे लेकर साइंटिफिक अमेरिकन मैगजीन में रिपोर्ट छपी थी, जिसमें कहा गया था कि धरती पर जिस तरह से बर्फ की चादरें पिघल रही हैं। उससे यह नहीं पता चल रहा है कि भविष्य में किस तरह के खतरों का सामना करना पड़ेगा।  वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती के 24 फीसदी हिस्से में पर्माफ्रॉस्ट  है। यानी हजारों साल से बर्फ जमी हुई है। ऐसा ही आर्कटिक भी है। आर्कटिक की बर्फ के नीचे कितने माइक्रोब्स हैं। वो किस तरह के हैं। उनका नेचर क्या है। वो खतरनाक है या सामान्य है…आदि-आदि, इसका कोई सही अंदाजा दुनिया के वैज्ञानिकों को नहीं है। बर्फ में दबे हजारों साल पुराने प्राचीन माइक्रोब्स भी हो सकते हैं। जैसे कि स्मॉलपॉक्स के माइक्रोब्स।

दो बड़ी घटनाएं सचेत करती हैं
-साल 2018 में ऐसी ही एक घटना साइबेरिया में हुई थी।  2018 में वहां एंथ्रेक्स फैला था। जिसकी वजह से 2 लाख रेंडियर और एक बच्चे की मौत हो गई थी।

-पिछले पांच साल में अलास्का में ऑर्थोपॉक्सवायरस से लोगों को अलास्कापॉक्स हो रहा था। इस बीमारी के चलते लोगों की त्वचा में दाने निकलते हैं और फट जाते हैं। पांच साल में इस वायरस ने अलास्का में दो बार हमला किया।