ससून अस्पताल पर मेस्मा लागू, हड़ताली कर्मियों की कसी लगाम

पुणे / समाचार ऑनलाइन
महाराष्ट्र एसेंशियल सर्विस एंड मेंटेनेंस एक्ट (मेस्मा) अब पुणे के ससून अस्पताल पर भी लागू कर दिया गया है। चार जुलाई को यहां तबादले के खिलाफ 10 कर्मचारियों ने हड़ताल की थी। मेस्मा में हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। ये कानून लागू होने पर सभी हड़ताली कर्मचारियों को 6 महीने तक जीवनावश्यक सेवा अधिनियम के तहत सेवा में उपस्थित रहना पड़ेगा।

कुछ दिन पहले, ससून अस्पताल की दस नर्सों का ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके खिलाफ महाराष्ट्र गवर्नमेंट नर्सेज एसोसिएशन ने बुधवार से हड़ताल शुरू कर दी थी। अस्पताल में भर्ती कुछ मरीजों के रिश्तेदारों ने हड़ताल के विरोध में बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार को डॉक्टरों के साथ ही नर्सों को भी महाराष्ट्र जीवनावश्यक सेवा अधिनियम 2011 की धारा 4 (1) (एमईएमए) के तहत रखने का आदेश दिया। इसके बाद सरकार ने ससून अस्पताल पर मेस्मा लागू कर दिया।

क्या है मेस्मा?
राज्य सरकार, स्थानीय निकाय और अन्य संबंधित संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली जीवनावश्यक सेवाओं की आपूर्ति को अबाधित रखने के लिए यह कानून बनाया गया है। इस कानून का इस्तेमाल सरकार हड़ताल के दौरान जीवनावश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति जारी रखने के लिए करती है। हड़ताली कर्मचारियों और अन्य संबंधित लोगों के खिलाफ यही कानून हड़ताल के दौरान आम जनजीवन को सामान्य बने रखने के लिए सरकार को कई अधिकार प्रदान करता है।

24 साल पुराना कानून
महाराष्ट्र में यह 24 साल पुराना कानून है। सबसे पहले इसे 1994 में दो साल के लिए लागू किया गया था। उसके बाद 1999 में इसे फिर से पांच साल के लिए लागू किया गया। 2005 और 2012 में इस कानून की अवधि फिर से पांच-पांच साल के लिए बढ़ाई गई। 2 अगस्त 2017 को समाप्त हो रही कानून की अवधि को फिर पांच साल बढ़ाने की मंजूरी मंत्रिमंडल ने दी हुई है।