Maratha Reservation: मराठा आरक्षण रद्द; सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली : राज्य के अतिसंवेदनशील राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे वाला मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है।राज्य सरकार द्वारा तैयार किए गए मराठा आरक्षण कानून को सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। न्यायालय के इस फैसले को मराठा समाज के विनोद पाटिल ने दुखद बताया है। इस मामले में कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए बहुत सारी गलतियाँ हुई, ऐसा पाटिल ने कहा। मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देनेवाले मराठा आरक्षण की याचिका पर आज सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया। मराठा समाज को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण देने को लेकर कोर्ट क्या फैसला सुनाएगी इस पर सबकी नजर थी।

गायकवाड समिति की रिपोर्ट स्वीकार करने योग्य नहीं है, ऐसा कहते हुए कोर्ट ने समिति की सिफारिश को खारिज कर दिया। हालांकि मराठा आरक्षण के माध्यम से अब तक हुए प्रवेश को रद्द नहीं किया जाएगा। राज्य सरकार द्वारा किया गया मराठा आरक्षण संविधान के बाहर है, ऐसा न्यायमुर्ती ने सुनवाई के दौरान कहा। इस बारे में बोलते हुए सांसद संभाजीराजे छत्रपती ने कहा कि मैं कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूँ, लेकिन अन्य राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण चलता है। फिर महाराष्ट्र को वही न्याय क्यो नही दिया जाता है, यह सवाल भी उठाया।

राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखने में कोई कसर नहीं छोड़ा। पहले की सरकार हो या अब की सरकार हो, दोनो सरकार ने आरक्षण के लिए कोशिश की। इस सरकार की ओर पहले गलती की गई। लेकिन उस गलती को सरकार ने सुधार लिया। ऐसा संभाजीराव ने कहा। अभी राज्य में कोरोना संकट है। इसलिए मराठा समाज संयम रखे। वे सड़क पर न उतरे। हम इस मामले में और कोई रास्ता निकाल सकते हैं क्या, इस पर विचार करते हैं। मैं अपील करता हूँ कि अभी कोरोना संकट में कोई भी सड़क पर न उतरे।

मुंबई उच्च न्यायालय में तत्कालीन फडणवीस सरकार द्वारा दिए गए मराठा समाज को शिक्षा और नौकरी आरक्षण कायम रखा था। हालांकि इसके विरोध में कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इसके बाद मराठा आरक्षण को स्थगित कर दिया था। इस मामले में न्यायाधीश अशोक भूषण की अध्यक्षता में 5 न्यायाधीश  की खंडपीठ ने फैसलासुनाया। 26 मार्च को कोर्ट ने इस फैसले को रिजर्व रखा था।

अभी तक क्या-क्या हुआ?

न्या. अशोक भूषण, न्या. एल. नागेश्वर राव, न्या. एस अब्दुल नजीर, न्या. हेमंत गुप्ता व न्या. रवींद्र भट की पीठ के सामने इस बारे में अंतिम सुनवाई 15 मार्च को शुरू हुई थी। आरक्षण की मर्यादा 50 प्रतिशत से ज्यादा बढाएकि नहीं, इस पअर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यो को अपना मत रखने को कहा था। इसके अनुसार राज्य ने अपना पक्ष रखा था। तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश आदि रआज्यो ने आरक्षण की अवधि बढाने को सपोर्ट किया था।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। 102वे संशोधन के मुद्दे पर यह कानून संवैधानिक होने की बात केंद्र सरकार ने कही थी। इससे पहले अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कानून विशेषज्ञ के रूप में अपनी राय रखी। तमिलनाडु, छत्तीसगढ, कर्नाटक का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ विधिज्ञ मुकुल रोहतगी ने कहा कि आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत को ही मान्य किया जाए उससे ज्यादा की मर्यादा को समर्थन नहीं किया जा सकता है।