कुपोषित एजुकेशन सिस्टम : डॉ. चाणक्य झा

पुणे : समाचार ऑनलाइन – महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जो की पुरे देश के जीडीपी का 35% शेयर करता है , बाबजूद इसके महाराष्ट्र में शिक्षा और शिक्षकों की स्थिति अन्यत दयनीय है. राज्य की स्थिति को देखा जाये तो मालूम चलता है की पिछले 8 या 10 सालो में न ही शिक्षा और  न ही शिक्षकों की स्तिथि में सुधार हुआ है और न ही सरकार या शिक्षक विधायक, और शिक्षक मंत्रियो के तरफ से ही कोई पहल की गयी है. ये शायद उनकी अज्ञानता का परिणाम हो सकता है या उनकी इच्छा शक्ति के कमी को परिदर्शित करता है.

राज्य की इस ख़राब एजुकेशन सिस्टम का कारण शिक्षक नहीं है अपितु शिक्षक तो खुद इस कुपोषित एजुकेशन सिस्टम का शिकार है. आज शिक्षक की स्तिथि  भिक्षक से बिलकुल नहीं है, यह जान कर काफी कलंकित लगता है की आज भी राज्य के शिक्षकों  को मैनेजमेंट या सरकार या अन्य किसी व्यस्थापक  के सामने अपने ही मेहनत का पगार पाने के लिया गिरगिराना परता है. यह एक आपातकालीन स्थिति है जिसके बारे में पुरे समाज को सोचने की जरूरत है. महाराष्ट्र एक संपन्न और सुदृढ़ राज्य है. एक ऐसा राज्य जिसके एजुकेशन व्यवस्था की बराबरी हमें फ़िनलैंड जैसे देशो  से करने की आयश्यकता  है, जबकि सचाई तो काफी अलग ही है. आज हम अपने ही देश में भी अव्वल नंबर पे नहीं पहुंच सके है.गौर देने योग्य बात यह है की इंफ्रास्ट्रक्चर या गुणवत्ता एजुकेशन दोनों में से किसी भी स्तर में हम विकाश नहीं कर पा रहे  है. लानत है ऐसे सरकार और ऐसी एजुकेशन सिस्टम पे जो अपने ही बच्चो को एक उचित शिक्षा नहीं दे सकता और ऐसे राज्य की शासन  व्यवस्था की जहां शिक्षकों के सम्म्मान नहीं.

सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी को छोड़ के अगर हम टेक्निकल एजुकेशन की देखे तो स्तिथि वद से वद्तर है. इंजीनियरिंग कॉलेज में शिक्षा का पूर्ण रूपेण अपराधीकरण चल  रहा है  . सायद ही कोई कॉलेज ऐसा होगा जहा पे शिक्षकों को नियमित वेतन ,नॉर्म के हिसाब से मिलता होगा , सायद ही किसी माताओ को मैटरनिटी का फायदा मिलता है. आज भी सभी मौलिक सुविधाओं से काफी दूर चल रहे है यहाँ के शिक्षक , फिर PF और पेंशन की तो बात ही काफी दूर है. ये एक कैसी वयवस्था है जहा 5 साल अगर कोई व्यक्ति विधायक रहे तो उसे पेंशन मिलता है लेकिन जिसने अपनी पूरी लाइफ राष्ट्र को समर्पित किया उन्हें पेंशन की सुविदा नहीं.आस्चर्या तो ये है आज भी बहुत सारे शिक्षक  5000 या 7000 रुपए प्रतिमाह में काम करते है  जो की लेबर रूल की हिसाब से काफी काम है. आज की जरुरत है की शिक्षा को वर्गीकृत करने की जबकि हमारे राज्य में शिक्षको का वर्गीकरण किया गया है कुल 30 केटेगरी की शिक्षक है. जैसे फुल पेमेंट शिक्षक , कॉन्ट्रैक्ट शिकसहक , अनुदानित शिकसहक , बिन अनुदानित शिकसहक , क्लॉक बेस्ड शिक्षक, ओल्ड पेंशन शिकसहक , परमानेंट शिकसहक आदि. यह वयस्था शिक्षक को भिक्षक बनाने की वयवस्था है . सरकार अपनी इस खोखली नीतियों की बंद करना चाहिए .,

आगे मैं आप लोगो को कुछ अटल सत्य से मुलाकात कराता हू – साल २०१० में महाराष्ट्र के १२ % स्कूल में कंप्यूटर की उबलब्धता थी ,जहा २०१८ में इसकी संख्या बढ़कर कर सिर्फ ६४.४ % हुई , अभी भी एक चौथाई से भी जयादा स्कूल में कंप्यूटर की वयवस्थता नहीं   है और हम  डिजिटल इंडिया की कल्पना कर रहे है. ६४.४ % कम्पूटरो को पढ़ने के लिए  सिर्फ ३५ % स्कूल में कंप्यूटर शिक्षक है और इसका परिणाम यह है कि  साल  २०१८ में सिर्फ १९ % स्टूडेंट्स कंप्यूटर का इस्तेमाल कर पाते थे . साल  २०१० में सिर्फ  ८३.१ %  और २०१८ में  सिर्फ ८८.४ % स्कूल में library  की वयवस्था थी जबकि सिर्फ ६२.४ %  स्टूडेंट्स  २०१० में और ३४ % स्टूडेंट्स २०१८ में इनका उपयोग कर पाते थे .

इंफ्रास्टक्टर  के मामले में भी हम बाकि राज्यों से काफी पीछे है साल २०१८  तक  सिर्फ ७४.९ %  स्कूलों में  कंपाउंड वाल लगायी गयी थी . हुई , आज भी सिर्फ  ३०  % स्कूल में पीने की पानी की वयवस्था  नहीं है. लडकियो के शिक्षा के प्रति सरकार या सरकार के प्रतिनिधि का धयान है ही नहीं , ६३.९ % गर्ल्स  टॉयलेट या तो बंद है या फिर उपयोग करने के लायक नहीं है , अगर टेक्निकल एजुकेशन की देखे तो  २०१८ में  15.13 लाख छात्रों ने पॉलिटेक्निक में दाखिला लिया जिसमे महिलाओं की संख्या 18.24% था ,जिसे बढ़ने की लिए सरकार के तरफ से या कोई भी – शिक्षक /शिक्षित आमदार के तरफ से कोई पहल नहीं की गयी है. अगर हम शिक्षा की क्वालिटी की बात करे तो ,हमारे सामने और भी चौकाने वाले आंकड़े आती है.

आप को जान की काफी हैरानी होगी की 2018 की पांचवी क्लास की बच्चो की साथ किये गए सर्वे की अनुसारर सिर्फ ६६% बच्चे मराठी टेक्स्ट को सही ढंग से पढ़ पाए  और सिर्फ ३१ % बच्चे ही गणित की डिवीज़न  कर पाए. क्या इस तरह की शिक्षण व्यवस्था को हम अपनाना चाहते है ? क्या शिवाजी महाराज ने इसी तरह की राष्ट्र का सपना देखा था ? क्या वीर सावरकर की सपनो भारत ऐसा होगा ?  जबाब होगा बिलकुल है . जो भी आमदार या खासदार चुन कर विधानसभा  या परिषद् में गए उन्होने से शिक्षकों की बौद्धिक क्षमता  का दुरूपयोग ही किया और दिया कुछ नहीं. कुछ विधायक तो शिक्षकों  की प्रमोशन या उनके पेंशन दिलाने की लिए डोनेशन भी जमा करते है. शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगो पे जिन्होंने अपने  नैतिक स्तर को  छोर कर शिक्षा का व्यवसायीकारन शुरू  किया है. हम एक शिक्षित राष्ट्र बनने से बहुत दूर हैं। ऐसी परिस्थियो की डट कर लड़ने का प्रयाश करने की पहल की जानी चाहिए.

हम एक शिक्षित राष्ट्र बनने से बहुत दूर हैं। ऐसी परिस्थियो की डट कर लड़ने का प्रयाश करने की पहल की जानी चाहिए. आज की स्तिथि में जहा हर जगह ,हर समस्याओ का निवारण के लिए अलग अलग तरह के मोबाइल बेस अप्प का निर्माण हो रहा है ,उसी तरह से शिक्षकों की समस्या को सुनने के लिए अलग एक व्यवस्था होनी चाहिए ऐसा मेरा मन्ना है . इंडिया के एजुकेशन सिस्टम में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन का निर्माण हुआ है जो की यूनिवर्सिटी के फार्मेशन और सञ्चालन के लिए वयवस्था बनती है और उससे रेगुलेट करती है, आल इंडिया कौंसिल ऑफ़ टेक्निकल एजुकेशन है जो की तकनिकी कॉलेज के नॉर्म और रेगुलेशन को संचालित करती है , यूनिवर्सिटी है जो की एडमिशन और परीक्षा को नियनट्रीट करती है. यह साड़ी नियंत्रण की पद्धति पूर्णरूपेण ऑनलाइन है , शायद ही कही पे कोई भी अथॉरिटी जा के कॉलेज या संस्था को विसिस्ट नहीं करता है .

मेरी माने तो ये एफ़िलिएशन या अप्रूवल कॉलेज को नहीं दिया जाता है अपितु उन् कागज के टुकड़ों को दिया जाता है जिन्हे संस्था चालक के बनाया होता है. क्या आप इस तरह की एजुकेशन सिस्टम पे विस्वास कर के भारत के सर्वांगीण विकास का रास्ता ढूंढ सकते है. एजुकेशन सिस्टम की सुरुवात और उद्देस्य मनुस्य बल की निर्माण से ज़ुरा होता है ,इसीलिए जब तक शिक्षकों की समस्या की सुनवाई और निदान निहि होगा तब तक एक समृद्ध राज्य के निर्माण की कल्पना भी करना मिथ्या होगा. आज जरुरत है एक ऐसी रेगुलेटिंग अथॉरिटी की जो की शिक्षकों के जोइनिंग प्रोसेस से लेके उनके सेवा निवृत होने तक के सभी पहलुओं को रेगुलेट करे . आज भी ३० % लेडीज फैकल्टी को मैटरनिटी का फायदा मिल पता है , लानत है ऐसी मानशिकता वाले लोगो पे जो महिलाओ को उन्हे हक़ नहीं दिला पते वास्तविकता में ये हक़ उन् बच्चो का होता है जिनके हातो से भारत का निर्माण होता है .

राज्यों में हजारो शिक्षक ऐसे है जिन्हे नियमित पगार नहीं मिलता (unaided  कॉलेज में काम करने वाले ), आज तक हमारे राज्यों के निजी विद्यालय या महा विद्यालय में छठी वेतन आयोग लागु नहीं हुआ , सातवीं वेतन आयोग का इम्प्लीमेंटेशन तो एक सपना मात्र है.  राज्य के शिक्षक के साथ प्रोविडेंट फण्ड या पेंशन स्कीम के बारे में सोचने से भी डर लगता है. शिक्षक निर्माण के मामले में महारष्ट्र राज्यों को अगर नाइजीरिया  या लीबिया से तुलना करे तो काम न होगा.  इंजीनियरिंग कॉलेज में शिक्षा का पूर्ण रूपेण अपराधीकरण चल  रहा है  . सायद ही कोई कॉलेज ऐसा होगा जहा पे शिक्षकों को नियमित वेतन ,नॉर्म के हिसाब से मिलता होगा , सायद ही किसी माताओ को मैटरनिटी का फायदा मिलता है. आज भी सभी मौलिक सुविधाओं से काफी दूर चल रहे है यहाँ के शिक्षक , फिर PF और पेंशन की तो बात ही काफी दूर है. ये एक कैसी वयवस्था  है जहा ५साल अगर कोई व्यक्ति आमदार  रहे तो उसे  पेंशन मिलता है लेकिन जिसने अपनी पूरी लाइफ  राष्ट्र को समर्पित किया उन्हें पेंशन की सुविधा  नहीं.यह वयस्था शिक्षक को भिक्षक बनाने की वयवस्था है . सरकार अपनी इस खोखली नीतियों की बंद करना चाहिए।

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