इंजीनियर की नौकरी छोड़ी, अब खेती से कमा रहे है ढाई लाख महीना 

बिहार : समाचार ऑनलाइन – जब लोग खेती से मुंह मोड़ रहे है, नौकरियों के पीछे भाग रहे है, ऐसे वक्त में बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजिनीयर की अच्छी नौकरी छोड़कर राजीव कुमार ने खेती को आय का मुख्य जरिया बना लिया है। वह नकदी फसलों और दुग्ध उत्पादन के बल पर हर महीने लगभग ढाई लाख रूपये कमा रहे है और क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए है। अब तो बाहर रह रहे उनके दोस्त भी खेती के बारे में उत्सुकता दिखाने लगे है।

पटना जिले के पुनपुन स्थित पोटही के राजीव कुमार ने 18 साल तक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी की। अब वह गांव में पुश्तैनी जमीन पर नकदी फसलों जैसे-आलू, प्याज, गोभी, टमाटर जैसी सब्जियों के अलावा पशुपालन कर रहे है। राजीव की इस पहल से पोटही गांव की तस्वीर बदल रही है। गांव छोड़कर जा चुके दोस्त अब उनके खेती के टिप्स लेने लगे है।  शुरू-शुरू में बेंगलूरु छोड़ने की बात पर घरवालों ने ही विरोघ किया। लेकिन धुन के पक्के राजीव ने परवाह नहीं की। वह गांव आ गये। जब गाय का गोबर उठाने से लेकर खेत में बुआई, निकाई-गुड़ाई करते थे तो सब लोग हंसी उड़ाते। वह बताते है कि उन्हें विश्वास था कि जब पैसा आने लगेगा तो सबकी सोच बदल जाएगी। हालांकि एक साल के अंदर धरती मां  ने धन्य बना दिया। आधे से अधिक दूध पुनपुन और पोटही में बिक जाता है। बाकी सुधा डेयरी को दे देते है। गांव में रहने का भी एक लाभ है कि यहां शुद्ध ताजी सब्जियां, दूध, दही, मक्खन मिल जाता है।

जिसने जन्म दिया उसे कैसे छोड़ देता
राजीव कुमार बताते है आज जो भी है मां के बदौलत है। पिता के निधन के बाद 18 एकड़ जमीन वीरान पड़ी थी। पिता ईश्वरानन्द सिंह पुनपुन के एक कॉलेज में प्रोफेसर पद से रिटायर् होने के बाद गांव में खेती करा रहे थे। उनका सपना था कि मैं गांव में रहकर खेती संभालू। पिता के निधन के बाद मां कुसुम बेंगरुलु नहीं जाना चाहती थी और मैं मां को अकेला नहीं छोड़ना चाहता। आख़िरकार गांव लौटने का फैसला किया। राजीव बताते है पत्नी और बच्चे अभी बेंगलुरु में ही रहते है। बच्चों की पढ़ाई भी ख़राब नहीं करना चाहता था। मैं 20 दिन गांव में खेती देखता हूं और दस दिन के लिए बच्चो के पास चला जाता हूं।

चमकता है मन
राजीव ने बताया कि आईटी सेक्टर में काम करने का अपना मजा था। एक रूटीन लाइफ थी, लेकिन खेती में जितना काम करो उतना पैसा है।  हालांकि बेंगलुरु में जितना काम लेता था, उतना अभी नहीं कमा पा रहा हूं। लेकिन सुबह-सुबह गांव, पगडंडी, खेत-खलिहान  देखकर मन चहक उठता है। अब खेती से और लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं। घर में संसाधन है तो बाहर जाकर नौकरी करने से अच्छा है कि खेतीबारी करें। इससे एक फायदा है कि गांव से जुड़े रहते है और ताजी हवा, खानपान मिल जाता है। युवाओं को ऐसे विकल्पों पर भी सोचना चाहिए।