एग्जिट पोल छोड़िये, मध्यप्रदेश में भाजपा ही बना रही है सरकार

भोपाल : समाचार ऑनलाइन – पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे कल घोषित हो जायेंगे. अब तक जो एग्जिट पोल सामने आये हैं, उनमें से अधिकांश में मध्यप्रदेश में भाजपा की वापसी होती हुई नहीं दिख रही है. हालांकि ये बात अलग है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित पार्टी नेता अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. वैसे, ज़्यादातर लोगों का भी मानना है कि प्रदेश में एग्जिट पोल के परिणामों के इतर भाजपा की ही सरकार बनेगी. पूर्व पत्रकार और राजनीतिक उथल-पुथल पर नज़र रखने वाले मुकेश यादव को लगता है कि एग्जिट पोल अपने इतिहास को दोहराएंगे. पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान तमाम एग्जिट पोल ने आम आदमी पार्टी की सरकार बनने की बात कही थी. लेकिन हुआ क्या सब जानते हैं. मतगणना शुरु होने के चार घंटे में ही एग्जिट पोल पूरी तरह खारिज हो गए थे. बकौल मुकेश, ये बात सही है कि लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा था, लेकिन इतना भी नहीं कि कांग्रेस को सत्ता सौंप दी जाए. पिछले 15 सालों में भाजपा ने अच्छा शासन चलाया है, और इतने लंबे वक़्त में कुछ मुद्दों को लेकर मनमुटाव स्वाभाविक है.

भोपाल से प्रकाशित इंडिपेंडेंट मेल के यूनिट हेड प्रवीण चव्हाण की नज़र में भी एग्जिट पोल एक बार फिर से गलत साबित होने जा रहे हैं. प्रवीण के मुताबिक, कांग्रेस में ऐसा एक भी नेता नहीं है जो शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता का मुकाबला कर सके. भाजपा ने एक संगठन के तौर पर चुनाव लड़ा है, जबकि कांग्रेस हमेशा की तरह बिखरी दिखाई दी. जो मुद्दे सरकार के लिए सिरदर्द बन सकते थे, कांग्रेस उन्हें भी उठाने में नाकाम रही. ऐसे में यह सोचना कि जनता ने कांग्रेस को चुना होगा, समझ से परे है. वैसे भी, अब तक 60 फ़ीसदी एग्जिट पोल तो गलत ही साबित हुए हैं. आपको 2004 का लोकसभा चुनाव याद होगा, चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से उत्साहित अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 4 महीने पहले ही चुनाव करा दिए थे. एग्जिट पोल के नतीजे भी वाजपेयी सरकार की सत्ता में वापसी दिखा रहे थे. लेकिन जब परिणाम आये तो भाजपा सत्ता से बाहर हो गई और यूपीए की वापसी हुई.

जब हुए गलत साबित-
2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल ने भाजपा की जीत सुनिश्चित कर दी थी. करीब-करीब सभी एग्जिट पोल में बिहार में भाजपा की सरकार बनती दिखा रहे थे. मगर परिणाम नीतीश कुमार के पक्ष में गए. सबसे चौंकाने वाला रहा आरजेडी का सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आना. क्योंकि एग्जिट पोल में उसे पूरी तरह नकार दिया गया था. तमिलनाडु में भी कुछ यहीं हाल रहा. एग्जिट पोल डीएमके की सरकार बनवा रहे थे, मगर लोगों ने एआईडीएमके को सत्ता की चाबी सौंप दी. ऐसे ही 2017 में हुए उत्तर प्रदेश चुनाव के एग्जिट पोल पूरी तरह गलत साबित हुए. एग्जिट पोल्स में शामिल हुई एजेंसी यह भांपने में नाकाम रहीं कि भाजपा को 325 सीटें मिल सकती हैं. सीएसडीएस का एक्जिट पोल तो सपा-कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा से कहीं आगे बता रहा था. थोड़ा पीछे चलें तो 1998 में भी एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे. उस दौरान मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार थी. तमाम एग्जिट पोल में कहा गया था कि कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं करेगी, मगर जब नतीजे आए तो कांग्रेस की सरकार दोबारा बनी और तमाम पूर्वानुमान गलत साबित हुए.

क्यों उठते हैं सवाल?
दरअसल, एक्जिट पोल करते वक़्त यह माना जाता है कि वोटर जब वोट देकर निकलता है तो वह सही बोलता है, लेकिन हर बार ऐसा होना संभव नहीं है. वह मुश्किल से ही सच बोलता है. कई बार तो वह पूछने वाले की मंशा के हिसाब से ऐसे जवाब देता है. एक्जिट पोल की सफलता सैंपल साइज की संख्या और उनकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है. ज्यादा सैंपल साइज वाले एक्जिट पोल के सही होने की संभावना अपेक्षाकृत ज्यादा होती है. साथ ही इस बात का भी महत्व होता है कि जो मतदान केंद्र सैंपल के लिए चुने गए वे मिश्रित आबादी के हिसाब से आदर्श हैं या नहीं?