जानिए वर्क प्लेस पर हो रहे यौन शोषण के खिलाफ क्या है कानून

नई दिल्ली | समाचार ऑनलाइन

पिछले कुछ दिनों से पूरे देश की महिलाएं बड़ी साहस के साथ अपने साथ हुए यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठा रही है। इसमें अधिकतर मामले ऐसे है जो वर्क प्लेस पर हुए है। यौन शोषण के खिलाफ ना सिर्फ बॉलीवुड की अभिनेता बल्कि, कॉमेडियन और कई वरिष्ठ पत्रकार पर भी आरोप लगाए गए है। आरोप लगाने वाली महिलाओं ने बताया कि, जिन लोगों ने उनके साथ यौन शोषण किया वे उनके साथ ही काम करते है। ट्वीटर पर चल रहे #MeToo कैम्पेन के जरिये महिलाएं इस बात का खुलासा कर रहीं है।

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अक्सर महिलाओं को यह पता नहीं होता की उनपे हो रहे शोषण के लिए क्या कानून है। यह जानना बेहद जरुरी है कि वर्क प्लेस पर शोषण को लेकर किस तरह के कानून है।

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वर्क प्लेस पर हो रहे महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ सरकार ने 2013 में सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ़ वुमन एट वर्कप्लेस का निर्माण किया था। इसके तहत कोई भी महिला वर्क प्लेस पर अपने ऊपर हुए यौन शोषण का शिकायत दर्ज करवा सकती है। इन मामलों के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम लाए गए – निषेध, रोकथाम और समाधान। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वे एक कंप्लेंट कमिटी गठित करेंगे जो वर्क प्लेस पर महिलाओं के साथ यौन शोषण के मामलों की निपटारा करेंगे।

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सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ़ वुमन एट –

2013 में यह कानून लाया गया कि सभी कंपनियों को आईसीसी (इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी) गठित करना अनिवार्य है जिसमें 10 या उससे अधिक कर्मचारी उसके सदस्य रहेंगे। इसके तहत वर्क प्लेस पर किसी भी तरह के यौन शोषण के खिलाफ शिकायत दर्ज की जाएगी और उसके खिलाफ उस एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी।

इस कानून के तहत पीड़िता को लिखित में अपनी शिकायत दर्ज कराना जरूरी है। लिखित शिकायत घटना के तीन महीने के अंदर दर्ज करनी होंगी । समय सीमा समिति के द्वारा बढ़ाई भी जा सकती है। आईसीसी दर्ज शिकायत को आईपीसी की धारा 509 के तहत पुलिस में भी दे सकती है। जांच पूरी होने पर आईसीसी को इसकी रिपोर्ट कंपनी को 10 दिनों के अंदर देना होता है।

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आरोप साबित होने पर समिति द्वारा कंपनी को उसकी पॉलिसी के तहत कार्रवाई करनी होती है। यह हर कंपनी की पॉलिसी पर निर्भर करता है। धारा 14 के तहत अगर आरोप गलत साबित होता है तो, ऐसे में कंपनी को शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। इसपर भी कंपनी अपनी पॉलिसी के अनुसार एक्शन लेगी।