अस्पताल जाने से पहले जान लें अपने अधिकार  

मुंबई : समाचार ऑनलाइन – भारत एक लोकतांत्रिक देश है। जहां हर किसी को अपने लिए कुछ न कुछ अधिकार है। हालांकि हम में से कई लोग अपने इस अधिकार को नहीं जानते है। जिसकी वजह से हम बेवजह बहुत सारी चीज़ों पर परेशान रहते है। सबके पास कई तरह के अधिकार होते है। जिसका अगर हम सही से इस्तेमाल करें तो बेवजह हमे कोई परेशान नहीं कर सकता है। यहां हम बात कर रहे अस्पताल के अधिकार के। बहुत कम ही लोगों को इस बात का एहसास होता है कि एक उपभोक्ता के नाते उनके भी अधिकार हैं।

अस्पताल से डिस्चार्ज का अधिकार –
कई बार देखा गया है कि अगर अस्पताल का पूरा बिल न अदा किया गया हो तो मरीज़ को अस्पताल छोड़ने नहीं दिया जाता है। हालांकि बाम्बे हाई कोर्ट ने इसे ‘ग़ैर क़ानूनी कारावास’ बताया है। बिल पूरा नहीं दे पाने की सूरत में अस्पताल लाश तक नहीं ले जाने देते। अस्पताल की ये ज़िम्मेदारी है कि वो मरीज़ और परिवार को दैनिक खर्च के बारे में बताएं लेकिन इसके बावजूद अगर बिल को लेकर असहमति होती है, तब भी मरीज़ को अस्पताल से बाहर जाने देने से या फिर शव को ले जाने से नहीं रोका जा सकता। लेकिन अगर कोई अस्पताल ऐसा करने से मना कर दे तो उस समय राज्य मेडिकल काउंसिल में डॉक्टर और अस्पताल के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करवा सकते है।

खुद मेडिकल स्टोर या डायग्नोस्टिक सेंटर चुनने का अधिकार –
कई बार ऐसा होता है कि अस्पताल में डॉक्टर उन्हें दवा की पर्ची देता है तो कहता है कि वो अस्पताल की ही दुकान से दवा खरीदें या फिर अस्पताल में ही डायग्नॉस्टिक टेस्ट करवाएं। हालांकि अस्पताल के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है की वह अपने हिसाब से आपको भेजे। उपभोक्ता को आज़ादी है कि वो टेस्ट जहां से चाहे, वहीं से करवाए।

इमरजेंसी मेडिकल मदद का अधिकार –
व्यक्ति की हालत अगर बहुत नाज़ुक है तो उस समय सरकारी और निजी अस्पताल के डॉक्टरों की ज़िम्मेदारी है कि उस व्यक्ति को तुरंत डॉक्टरी मदद दी जाए।  जिसमें सांस लेने में आ रही किसी दिक्क़त को हटाना, खून के नुक़सान की जांच करना, नसों के माध्यम से मरीज़ को तरल पदार्थ देना आदि। जान बचाने के लिए ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएं देने के बाद ही अस्पताल मरीज़ से पैसे मांग सकते हैं।

खर्च की मरीजों को जानकारी देना –
मरीज को जानकारी का हक़ है कि उन्हें क्या बीमारी है और इलाज का क्या नतीजा निकलेगा। साथ ही मरीज़ को इलाज पर खर्च, उसके फ़ायदे और नुक़सान और इलाज के विकल्पों के बारे में बताया जाना चाहिए। इलाज और खर्च के बारे में जानकारी अस्पताल में स्थानीय और अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखी होनी चाहिए।

मेडिकल रिपोर्ट्स पर अधिकार –
किसी भी मरीज़ या फिर उसके मान्यता प्राप्त व्यक्ति को अधिकार है कि अस्पताल उसे केस से जुड़े सभी कागज़ात की फ़ोटोकॉपी दे।  ये फ़ोटोकॉपी अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर और डिस्चार्ज होने के 72 घंटे के भीतर दी जानी चाहिए।

डॉक्टर बदलने का अधिकार –
अगर आप किसी डॉक्टर के तरीके से ख़ुश नहीं हैं तो आप किसी दूसरे डॉक्टर की सलाह व बदलाव कर सकते हैं। ऐसे में ये अस्पताल को सभी मेडिकल और डायग्नोस्टिक रिपोर्ट मरीज़ को उपलब्ध करवानी चाहिए।