जॉन और निखिल ने की देशभक्ति पर चर्चा

मुंबई (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाईन – अभिनेता जॉन अब्राहम और फिल्मकार निखिल आडवाणी की रूचि ऐसी कहानियों का हिस्सा बनने की है जो वास्तविक जीवन से प्रेरित घटनाओं और राष्ट्रीय हितों के इर्द-गिर्द घूमती है और यह बात उनकी फिल्मों से साफ तौर पर झलकती है।

दोनों की हालिया फिल्म ‘बाटला हाउस’ लोगों के बीच इस पर चर्चा का विषय है और जॉन व निखिल का कहना है कि उनकी नजर से देशभक्ति ‘राष्ट्रवादी रवैये’ से अलग है।

निखिन ने आईएएनएस को बताया, “यहां एक स्ट्रॉन्ग लाइन है जो देशभक्ति को कट्टर राष्ट्रवाद से अलग करती है। हमारी राय में, एक देशभक्त वह है जो देश की अच्छी व सकारात्मक चीजों को लेकर खुश होता है और साथ ही उन चीजों की आलोचना करता है जिन्हें बदलने की आवश्यकता है।”

निखिल ने अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहा, “दूसरी ओर एक कट्टर राष्ट्रवादी वह है जो राष्ट्रवाद में अंधा रहता है और उसे हर चीज पर गर्व महसूस होता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा और यहां तक की वह नकारात्मकता की आलोचना भी नहीं करता है। एक फिल्मकार के नाते हम देशभक्त हैं और हमारे विचार हमारी फिल्मों में झलकती है।”

निखिल की बातों से सहमत होकर जॉन ने कहा, “निखिल बिल्कुल सही हैं। यह एक कारण है कि पिछले पांच वर्षो में फिल्मकार उन कहानियों पर फिल्में बना रहे हैं जिनका संबंध हमारे राष्ट्रीय गौरव, हमारी उपलब्धियों और हमारी कहानी से है। आजकल के युवाओं को भारतीय होने का गर्व है।”

जॉन ने यह भी कहा, “यहां ऐसे भी लोग है जो हमारे द्वारा किए जाने वाले हर चीज के बारे में अंधे हैं और यही राष्ट्रवाद कहलाता है। देशभक्त इससे थोड़ा अलग है। वे उन बातों पर अपनी आलोचनात्मक राय रखते हैं जिनमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए बदलाव की आवश्यकता है।”

निखिल इससे पहले ‘डी-डे’, ‘एयरलिफ्ट’ जैसी फिल्मों के साथ-साथ टेलीविजन प्रोग्राम ‘पी.ओ.डब्ल्यू.- बंदी युद्ध के’ का भी निर्देशन कर चुके हैं। निखिल के ये सारे प्रोजेक्ट्स देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम पर आधारित है, जबकि जॉन भी ‘बाटला हाउस’ से पहले ‘मद्रास कैफे’, ‘परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरन’, ‘सत्यमेव जयते’ और ‘रोमियो अकबर वाल्टर’ जैसी फिल्मों के साथ जुड़ चुके हैं।

‘बाटला हाउस’ के निर्देशक निखिल ने यह भी कहा, “जब बात देशभक्ति की आती है, तो पशु कल्याण, कोस्टल रोड, मॉब लिंचिंग औ यौन उत्पीड़न पर भी राय व्यक्त की जा सकती है- चीजें जो गलत है और जिन पर आवाज उठाने की आवश्यकता है। यही वह है जो एक देशभक्त और कट्टर राष्ट्रवाद के बीच भेद करता है।”