IPS ऑफिसर का गांधीवाद, खुद का न घर न गाडी

नई दिल्ली, 30 जनवरी – आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है. मौजूदा स्थिति में खुद को गांधीवादी मानना और सच्चे अर्थो में गांधी के विचारो पर चलना दोनों अलग बातेंहै।  लेकिन  यह अंतर आपको तब नज़र आएगा जब आप दिल्ली के पुलिस के स्पेशल सीपी रॉबिन हिबू को देखंगे। रॉबिन बड़े ओहदे पर काम करते है. देश उन्हें पहले आदिवासी आईपीएस के रूप में जनता है., वह काफी सालो तक यूएन में रहे. उनके नाम पर दो राष्ट्रपति मेडल, कई अवार्ड, सम्मान पत्र और कई पुरस्कार है. लेकिन उन्हें अपने करियर में भेदभाव का भी सामना करना पड़ा.

खुद का न घर न गाडी

रॉबिन गांधीवाद को अपने आचरण में रखते है. अब तक ऐसा कौन सा आईपीएस अधिकारी होगा जिसका न कोई घर है न गाडी। लेकिन रॉबिन के पास घर नहीं है. उनके पास टू-व्हीलर तक नहीं है. एक लकड़ी का जो घर था वह बापू के प्रेम में जरूरतमंदों को दे दिया। अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा पर घने जंगलो और पहाड़ी के बीच फैला होन्ग उनका गांव है. आजादी के 70 साल बाद भी ये गांव मुलभुत सुविधाओं से वंचित है. ऐसी स्थिति में रहते हुए रॉबिन ने 1993 स्पर्धा परीक्षा पास की. उनके पिता लकड़ी तोड़ने का काम करते थे इसलिए रॉबिन का बचपन गरीबी में बीता।
जून 1893 में महात्मा गांधी को रंगभेद के तहत साउथ अफ्रीका में चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था. यह घटना रॉबिन के साथ भी घटी जेएनयू में प्रवेश पाने के बाद एक दिन ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन से वह यात्रा कर रहे थे. लेकिन टिकट होने के बावजूद उन्हें अपनी सीट से उठा दिया गया था. उन्होंने इसके बाद शौचालय के पास बैठकर दिल्ली तक की यात्रा पूरी की. कई बार उनका चेहरा देखकर चीनी व्यक्ति समझा जाता है और इसे लेकर उन पर कमेंट किये जाते है.
उन्होंने अपने गांव की 8 कमरों की दो मंजिली मकान गांधी म्यूजियम के लिए दी है. इस नए म्यूजियम के लिए राजघाट म्यूजियम ने बापू का चश्मा और चप्पल देने का आश्वासन दिया है. यहाँ पर हज़ारो पुस्तक की लाइब्रेरी तैयार की गई है. एक कमरे में उनकी मां मुफ्त में डिस्पेंसरी चलाती है. इसके अलावा गांव के लोगों के लिए हेल्पिंग इंडिया नाम का संघटना भी बनाया है.