सुप्रीम कोर्ट की अहम व्यवस्था…दोषी ठहराए जाने से पहले विधायक का डाला गया वोट अवैध नहीं

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : सुप्रीम कोर्ट के सामने एक अजीगरीब मामला सामने आया। जनप्रतिनिधि से जुड़ा होने के कारण और जिज्ञासु रहा। सवाल उठाया गया था कि क्या कोई अपराध सिद्ध दोषी विधायक मत देने का अधिकारी हो सकता है। ऐतिहासिक फैसले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ही दिन में आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने से पूर्व विधायक द्वारा डाले गए वोट को अवैध नहीं ठहराया जा सकता।

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने इसे दिलचस्प, लेकिन दूरगामी असर वाला सवाल बताते हुए 23 मार्च, 2018 को राज्यसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक अमित कुमार महतो द्वारा दोपहर 2.30 बजे दोषी ठहराए जाने से पूर्व सुबह 9.15 पर डाले गए वोट को वैध ठहराया। अदालत ने कहा कि  दोषी ठहराए जाने से पूर्व अयोग्य ठहराना उसके दोषी साबित होने तक निर्दोष की तरह माने जाने के अधिकार का उल्लंघन होगा।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में झारखंड से राज्यसभा सांसद चुने गए कांग्रेस नेता धीरज प्रसाद साहू के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार संथालिया ने झारखंड हाईकोर्ट के आदेश में शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। दरअसल, महतो को 23 मार्च, 2018 को निचली अदालत ने एक मामले में दोषी ठहराया था और उसी दिन राज्यसभा के लिए वोट डाले गए थे।

हाईकोर्ट ने इस साल जनवरी में संथालिया की याचिका खारिज करते हुए साहू के चुनाव को सही ठहराया था। बता दें कि इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी धीरज प्रसाद साहू विजयी और भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार पराजित हुए थे। पीठ ने कहा कि अगर वह इसके इतर फैसला सुनाती तो इसका मतलब होता कि रिटर्निग आफिसर के पास 9.15 बजे इस बात की दूरदृष्टि होनी चाहिए थी कि दोपहर में आपराधिक मामले का फैसला क्या होगा या फिर चुनाव आयोग को इसका फैसला करने का अधिकार देते, जिससे अंतहीन भ्रम और गैरजरूरी अराजकता फैल जाएगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अयोग्यता दोषी ठहराए जाने के बाद एक परिणाम है और परिणाम कभी भी कारण से पहले नहीं हो सकता।