एचसीएमटीआर के प्रोजेक्ट का टेंडर आखिरकार रद्द हुआ

पुणे : समाचार – बहुचर्चित एचसीएमटीआर (हाई कैपेसिटी मास ट्रांजिट रूट या रिंग रोड) प्रोजेक्ट के लिए 45% ज्यादा दर से पेश की गई निविदा रद्द करने का निर्णय प्रशासन ने लिया है. यह निविदा पेश करने वाली कंपनी को अपना पक्ष स्पष्ट करने हेतु दी गई अवधि गुरुवार को समाप्त हो गई. कंपनी ने अवधि में दो सप्ताह की वृद्धि की मांग की थी, मगर उसे मंजूर नहीं किया गया व निविदा रद्द करने का निर्णय लिया गया. यह जानकारी मनपा अधिकारियों ने दी.

शहर में ट्रैफिक की समस्या दूर करने की दृष्टि से करीब 36 किलोमीटर लंबे एचसीएमटीआर के लिए टेंडर जारी किया गया है. राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है. 5,192 करोड़ की लागत वाले इस प्रोजेक्ट के लिए ठेकेदारों ने अनुमानित दर की तुलना में 45% से 50% ज्यादा दर की निविदाएं पेश कीं. चीन की गावर एवं लाँगजियान कंपनियों ने संयुक्त रूप से 7,525 करोड़ रुपए की न्यूनतम दर की निविदा पेश की है. उसके बाद चीन की ही वेलस्पन, अदानी ग्रुप एवं सीसीटीईबीसीएल कंपनियों ने संयुक्त रूप से 7,966 करोड़ की निविदा पेश की है. दो महीने पहले निविदाएं खोली गईं व एक विशेष समिति गठित कर संबंधित कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ ज्यादा दर क्यों पेश की गई? इस विषय पर चर्चा हुई. यह निविदा हैम सिस्टम से जारी की गई थी. इसके अनुसार प्रोजेक्ट शुरू होते ही पहले तीन सालों में मनपा को प्रोजेक्ट की लागत का 40% हिस्सा यानी करीब 2,800 करोड़ रुपए देने होंगे. शेष 60% राशि अगले 12 साल में छह-छह महीनों की किश्तों में अदा की जाएगी. प्रोजेक्ट के निर्माण की अवधि 3 साल निर्धारित की गई है. इसके चलते प्रोजेक्ट की लागत का शेष 60% हिस्सा कंपनी को खर्च करना होगा. तब तक ये कंपनियां यह फंड बैंकों एवं फाइनेंस कंपनियों से कर्ज के रूप में जुटाएंगी. प्रोजेक्ट के निर्माण व देखभाल की अवधि 15 साल होने के चलते आर्थिक स्थिति अनिश्चित रहती है. कर्ज की ब्याज दर भी कम-ज्यादा होती रहती है. इस वजह से निविदा ज्यादा दर से पेश की गई. यह स्पष्टीकरण कंपनियों ने दिया है.

मनपा अधिकारियों ने बताया कि मनपा प्रशासन ने इन कंपनियों से संपर्क कर 7 नवंबर तक अंतिम निर्णय की जानकारी मांगी गई थी. निर्धारित अवधि में कंपनियों से स्पष्टीकरण नहीं मिला. कंपनियों ने अवधि में दो सप्ताह की वृद्धि की मांग की है. इस प्रोजेक्ट की निविदाएं खोलने के बाद तीन महीने का समय बीत चुका है. तकनीकी व आर्थिक स्तर पर बढ़ी हुई दर की बारीकी से जांच की गई. मनपा की पॉलिसी के अनुसार ज्यादा दर से प्राप्त निविदाओं को स्वीकार न किए जाने पर पहले ही जोर दिया जा रहा है. मगर सत्ताधारियों के दबाव के चलते विशेष समिति गठित कर कंपनियों से चर्चा भी की गई. इसके बावजूद कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. इसलिए निविदा रद्द करने का निर्णय लिया गया है.