क्रेच संचालकों के लिए बच्चों की देखरेख को लेकर गाइडलाइन जारी

शिवाजीनगर : समाचार ऑनलाइन –  नौकरीपेशा युगलों के बच्चों की देखरेख करने वाली प्राइवेट एवं सरकारी संस्थाओं को पालनाघर या क्रेच में स्वच्छता, बच्चों के लिए उपलब्ध सुविधाओं तथा क्रेच के कर्मचारी बच्चों से कैसा व्यवहार करें? इस विषय में गाइडलाइन निर्धारित की जाएगी. सभी के्रच को गाइडलाइन का पालन करना जरूरी है. शहर के क्रेच में बच्चों की देखरेख उचित तरीके से हो, यह प्रयास राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है. महिला व बालकल्याण विभाग ने सभी मनपाओं को क्रेच के लिए गाइडलाइन तैयार करने का आदेश दिया है. इसके अनुसार मनपा के समाज विकास विभाग द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव पर नीतिगत निर्णय लिया जाएगा.

पुणे जैसे शहरों में एकल परिवार (न्यूक्लियर फैमिली) की संख्या तेजी से बढ़ रही है. नौकरी के लिए पति-पत्नी दोनों को दिनभर बाहर रहना पड़ता है. इसलिए बच्चों को क्रेच में रखा जाता है. इनके लिए अब तक के्रच की जगह,  वहां के कर्मचारियों के प्रशिक्षण, इमर्जेन्सी व्यवस्था, स्वच्छता, उन्हें दिए जाने वाले भोजन आदि के लिए कोई ठोस शर्तें निर्धारित नहीं की गई हैं. इसके चलते कई जगहों पर शौकिया तौर पर के्रच शुरू कर दिए जाते हैं. कुछ जगहों पर भारी फीस वसूलने के बावजूद बच्चों को सुविधाएं न दिए जाने, वहां स्वच्छता का अभाव तथा कुछ जगहों पर बच्चों की पिटाई के मामले भी सीसीटीवी कैमरे के जरिए उजागर हुए हैं. क्रेच के संचालकों द्वारा ध्यान न रखे जाने से कई गंभीर दुर्घटनाएं भी घट चुकी हैं. स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे क्रेच के लिए नियमावली जारी किए जाने की मांग लगातार जोर पकड़ रही थी.

अंतत: महिला एवं बालकल्याण मंत्रालय द्वारा शहर के सभी क्रेच मालिकों को संबंधित मनपा में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है. साथ ही इनके लिए गाइडलाइन के निर्धारण के आदेश भी दिए गए हैं. राज्य सरकार के आदेशानुसार मनपा के समाज कल्याण विभाग द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद उसे क्रियान्वित किया जाएगा.
अभिभावकों को राहत मिलेगी

क्रेच पर नियंत्रण के लिए राज्य में कोई अधिनियम न होने से बच्चों को सुविधाओं से वंचित रखने वाले के्रच संचालकों के खिलाफ कार्रवाई पुलिस तथा महिला व बालकल्याण विभाग उनके खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं कर सकता. दिनभर कार्य में व्यस्त रहने वाले उनके माता-पिता भी बच्चों की चिंता से ग्रस्त रहते हैं. इस विषय में ठोस नियमावली के निर्धारण के बाद अभिभावकों को इस समस्या से छुटकारा मिलने की अपेक्षा व्यक्त की जा रही है.