नासिक : समाचार ऑनलाइन – पिछले 25 वर्षों में महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर 24 निर्णय लिए हैं, लेकिन पति द्वारा आत्महत्या करने के बाद डूबी खेती और उजड़ चुके संसार का बोझ लेकर घूम रही पीड़ित पत्नियों के लिए आज तक एक भी शासन ने निर्णय की घोषणा नहीं की। इतना ही नहीं हर दिन के जीवन के लिए आवश्यक और मूलभूत जरुरतों को पूर्ती करने वाली सामाजिक सुरक्षा योजना को भी इन महिलाओं तक पहुंचाने में सरकार पूरी तरह असफल रही है।
महिला किसान अधिकार मंच अर्थात ङ्गमकामम राष्ट्रीय नेटवर्क के द्वारा महाराष्ट्र की किसान विधवाओं पर अध्ययन किया है। विदर्भ और मराठवाड़ा के आत्महत्याग्रस्त 11 जिलों की महिलाओं के साथ ङ्गमकामम द्वारा किए गए सर्वे में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। इन महिलाओं ने अब किसानों और परिवार प्रमुखों के उनके साथ बने रहने हेतु और किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए सरकार से स्वतंत्र पॉलिसी बनाने की मांग की है।
देश में हुई कुल आत्महत्या में 20 प्रतिशत आत्महत्या केवल महाराष्ट्र में हुई है।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 1995 से 2016 के दौरान महाराष्ट्र के 70 हजार किसानों ने आत्महत्या की है।उनके बाद उतनी ही संख्या उनकी विधवाओं और बेसहारा माताओं की है।जीने के अधिकार और कृषि के कई सवालों से उन्हें अकेले जूझना पड़ रहा है।लेकिन आत्महत्या के बाद पंचनामा, मदद का प्रस्ताव, पात्र-अपात्र की प्रक्रिया और उसके बाद पात्र परिवारों को मिलने वाली मदद (35 हजार रुपए कैश और 35 रुपए का एफडी) को छोड़कर सरकार और समाज इन दोनों वर्गों ने महिलाओं से कोई संवाद या संपर्क नहीं रहता है।