गुजरात, यूपी में किसानों से ज्यादा खेतिहर मजदूरों ने की आत्महत्या !

नई दिल्ली। समाचार ऑनलाइन
लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत किए गए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीअरबी) के आंकड़ों की मानें तो साल 2014 से 2016 के बीच ‘कृषि / कृषि में स्वयं रोजगार में लगे व्यक्तियों में से आत्महत्या करने वाले 36,332 लोगों में से करीब 16324 या लगभग 45% लोग खेतिहर मजदूर थे जबकि 20,008 लोग किसान थे।
बात करें आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, केरल और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों की तो यहां एनसीआरबी के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2014 से 2016 के बीच आत्महत्या करने वालों में किसानों से ज्यादा तादाद खेतों में काम करने वाले मजदूरों की है जिनको लेकर सरकारों ने भी कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
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गुजरात, यूपी में मजदूरों के आत्महत्या की दर अधिक
इन तीन सालों में तमिलनाडु में, 106 किसानों ने आत्महत्या की जबकि इनकी तुलना में इन तीन वर्षों में 1,776 श्रमिकों ने मौत को गले लगा लिया।आंधप्रदेश में इन तीन सालों में आत्महत्या करने वालों में 915 किसान रहे तो खेतिहर मजदूर 1437 थे। वहीं क्रमशः केरल में यह आंकड़ा 133 और 1205, गुजरात में 132 और 1177 जबकि उत्तरप्रदेश में यह 277 और 423 का रहा।
बिहार, बंगाल में सिर्फ मजदूरों ने की आत्महत्या
आंकड़ो की मानें तो 2014 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और बिहार में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है, लेकिन इस अवधि के दौरान कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक में आत्महत्या करने वाले किसान अधिक
हांलाकि कुछ राज्यों में यह आंकड़े बिल्कुल उलट भी हैं। जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में खेतिहर मजदूरों के बजाए किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा ही अधिक है। इन तीन सालों में महाराष्ट्र में 8148 किसानों ने आत्महत्या की जबकि 3808 खेतिहर मजदूरों ने मौत को गले लगाया। वहीं क्रमशः कर्नाटक में यह आंकड़ा 2730 और 1686 का रहा जबकि मध्यप्रदेश में 2006 और 1803, तेलंगना में 2888 और 504 तथा छत्तीसगढ़ में 1882 और 509 का रहा।
नहीं मिल पाता सरकारी योजनाओं का लाभ
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की ओर से मिलने वाली किसान ऋण छूट का बड़े पैमाने पर बड़े किसान ही फायदा उठा लेते हैं। जबकि  सीमांत किसानों और खेतिहर मजदूरों को इसका सीधा लाभ नहीं मिल पाता है।
प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में बने द नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स (एनसीएफ) ने भी सिफारिश की थी कि कृषि मजदूरों को भूमिहीन किसानों के रूप में माना जाए और उनके लिए रोजगार गारंटी कार्यक्रमों के साथ कई प्रमुख गैर-कृषि पहल किए जाएं।