मुंबई, 25 नवंबर गर्भावस्था के आठ महीने में आराम करने के बजाय डॉ. सरिता दत्तात्रय बांबले 6 से 7 पीपीआई किट पहनकर मुलुंड के कोविड सेंटर में सेवा दे रही है। मरीजों की सेवा करते हुए वह दो वक्त का भोजन भी भूल जाती है।
डॉ. सरिता इस कल्याण परिसर में पति, सास और साढ़े 6 साल की बेटी के साथ रहती है। पति भी मेडिकल सेक्टर में कार्यरत है। कोरोना काल में उन्होंने अपनी बेटी को रिश्तदारों के पास रख दिया है। ऐसी स्थिति में डॉ. सरिता को अपने गर्भवती होने का पता चला. सब खुश थे, लेकिन कोरोना को बढ़ते संक्रमण में उन्हें घर बैठना अच्छा नहीं लग रहा था। दूसरी तरफ कोविड सेंटर के लिए डॉ. की मेडिकल सेवा के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी को देखते हुए उन्होंने कोविड सेंटर में काम करना तय किया। घर वालों के सहयोग से यह संभव भी हुआ।
निर्मल केयर अंतर्गत मुलुंड के कोविड सेंटर में 15 जून से ऑपरेशन हेड के रूप में वह काम से जुडी है। कल्याण से लोकल के जरिये रोज आना-जाना करती थी । दिन भर के काम के बाद शाम में फिर से लोकल की फिर में वह घर वापस लौटती है। उनकी शुरुआत से ही ऐसी दिनचर्या है. लेकिन रात देररात मरीजों की जरुरत को देखते हुए उन्होंने सेंटर में ही रहने का निर्णय लिया और सप्ताह में एक बार बेटी को देखने के लिए घर जाती है। 9 महीने होने को आये उन्होंने बेटी को करीब से नहीं देखा है। कोविड सेंटर में 275 बेड है जिसमे 300 से अधिक मरीजों का दवाब है। इसलिए नर्सिंग रूम को खोल दिया गया है। मरीजों के साथ यहां अन्य डॉक्टर, नर्स, कर्मचरियो की जिम्मेदारी सरिता के कंधे पर है। सरिता बताती है कि मैं केवल अपना काम करती हूं। अगर मैं घर बैठ गई तो मेरी शिक्षा का क्या फायदा ? यहां के प्रमुख डॉ. निर्मल जैन के प्रोत्साहन से सभी काम संभव हो रहा है।
चक्कर आने के बाद फिर से खड़ी हुई
कोरोना मरीजों का बढ़ता दवाब, भरे हुए बेड्स और उस पर तीसरे महीना शुरू होने की वजह से वह चक्कर आने से गिर गई थी। ऐसी स्थिति में भी वह कोरोना मरीजों के इलाज के लिए आई। बेड नहीं मिलने पर नागरिको का आक्रोश शुरू हो गया था। ऐसी स्थिति में वह खुद का दुःख भूल कर डटी रही। उन्होंने अन्य जगहों पर मरीजों के लिए बेड उपलब्ध कराया।