महाराष्ट्र में 2 बार पहले भी लागू हो चूका है ‘राष्ट्रपति शासन’, जानें कब और क्यों?

मुंबई : समाचार ऑनलाइन – राज्य की तीन प्रमुख पार्टियों द्वारा सत्ता बनाने का कोई दावा पेश नहीं किए जाने के बाद अब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया है. आज दोपहर तक केंद्र सरकार और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने भी राज्यपाल की सिफारिश को मंजूरी दे दी थी. बता दें कि इससे पहले भी महाराष्ट्र में दो बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चूका है.

महाराष्ट्र के इतिहास में, राष्ट्रपति शासन को 2 बार लागू किया गया था. सन 1978 और सन 2014 के दौरान राज्य राष्ट्रपति के अधीन हो गया था. साल 1978 में, शरद पवार के आधिपत्य में पुलोद का शासन था. उस समय मध्यावधि चुनाव करवाने पड़ गए थे. इसलिए राज्य में पहली बार 17 फरवरी1980 से 9 जून 1980 तक महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था.

इसके बाद दूसरी बार साल 2014 में, महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया. साल 2014 के दौरान 32 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा था. पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार से राकांपा के समर्थन वापसी के बाद, सरकार गिर गई थी. इसके बाद महाराष्ट्र में 28 सितंबर 2014 से 31 अक्टूबर 2014 के बीच राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था.

क्या होता है राष्ट्रपति शासन –

भारतीय संविधान में 3 प्रकार के आपातकाल हैं.

1. राष्ट्रपति का आपातकाल

2. आर्थिक आपातकाल

3. राष्ट्रपति शासन

अनुच्छेद 356 के अनुसार, राज्य में शासन व्यवस्था सुव्यवस्थित नहीं होने पर राष्ट्रपति शासन का प्रावधान है. राष्ट्रपति शासन उन राज्यों में लगाया जाता है जहाँ सरकारें केंद्र के आदेशों की अनदेखी कर रही हैं. यह निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह से लिया जाता है. राज्यपाल राज्य की स्थिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति को करता है, फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जाती है.

राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, इसे संसद की स्वीकृति की आवश्यकता होती है. राष्ट्रपति शासन लागू होने के 6 महीने बाद तक यह प्रभाव में रहता है. लेकिन इस अवधि को संसद द्वारा एक बार फिर से 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है. राष्ट्रपति शासन अगले 3 वर्षों तक चल सकता है.

राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या होता है?

राष्ट्रपति शासन लागू होते ही राज्य के सभी मामले राष्ट्रपति के पास चले जाते हैं. राष्ट्रपति की तरफ से राज्यपाल राज्य के मामलों को देखते हैं.

राज्य विधानमंडल के मामलें भी संसद को भी सौंप दिए जाते हैं. यही नहीं राज्य की निधि से पैसा खर्च करने संबंधी आदेश भी राष्ट्रपति देते हैं.

कम शब्दों में कहें तो जिस राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाता है, उस राज्य की बागड़ोर एक तरह से राष्ट्रपति के हाथों में चली जाती है. साथ ही राज्य से जुड़े सभी महत्वपूर्ण निर्णय उनके द्वारा ही लिए जाते हैं.