उमर की नजरबंदी पर अब 5 को फैसला

ऑनलाइन समाचार : नेशनल कांफ्रेस के नेता एवं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी को चुनौती देने वाली सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर अब पांच मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। कोर्ट अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ के समक्ष सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से जवाब दाखिल करेंगे।

बता दें कि उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने शीर्ष अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपने भाई की जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंदी के पांच फरवरी के प्रशासन के आदेश को चुनौती दे रखी है। यचिका में कहा गया है कि उनकी नजरबंदी का आदेश गैरकानूनी हैं और सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में उनके भाई से किसी प्रकार का खतरा होने का सवाल ही नहीं है। ‘यह बिरला मामला है कि वे लोग जिन्होंने सांसद, मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री के रूप में देश की सेवा की और राष्ट्र की आकांक्षाओं के साथ खड़े रहे, उन्हें अब राज्य के लिए खतरा माना जा रहा है।’

याचिका में यह भी कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को चार-पांच अगस्त, 2019 की रात घर में ही नजरबंद कर दिया गया था। बाद में पता चला कि इस गिरफ्तारी को न्यायोचित ठहराने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 107 लागू की गई है। इसके अनुसार, ‘इसलिए यह नितांत महत्वपूर्ण और जरूरी है कि यह न्यायालय व्यक्ति के जीने और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा ही नहीं करे, बल्कि संविधान के भाग के अनुरूप अनुच्छेद 21 के भाव की भी रक्षा करे, क्योंकि जिसका उल्लंघन एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अभिशाप है।

आरोप….उमर ने भीड़ का उकसाने का किया काम

लोक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में लिए गए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर संगीन आरोप लगाए गए हैं। पीएसए डोजियर में हिरासत की वजह यह बताई गई है कि 49 वर्षीय उमर ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की पूर्व संध्या पर अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने को लेकर भीड़ को उकसाने का काम किया था।