शिवसेना के तेवर में बदलाव…पवार की तारीफ और कांग्रेस पर वार, करते हैं दूर के इशारे  

मुंबई. ऑनलाइन टीम : शिवसेना के तेवर में बदलाव दिख रहा है। हाल के दिनों में शिवसेना खुद को ऐसे पेश कर रही है जैसे वो चैन से सोई हुई थी और अचानक जाग गई हो। उसका अंदाज काफी बदला हुआ नजर आ रहा है। ऐसा भी नहीं कि शिवसेना में कोई नई बात नजर आने लगी हो, बल्कि वो तो खुद को कुछ कुछ पुराने अंदाज में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही है। शिवसेना की जो ताजा छवि सामने आ रही है वो राज ठाकरे जैसी तो बिलकुल नहीं है। पूरी तरह बाल ठाकरे वाली भी नहीं कही जा सकती है – लेकिन कुछ तो खास है जो बदला हुआ नजर आ रहा है। शिवसेना के पास ऐसे दो मारक हथियार हैं जिनके वार सटीक होते हैं – एक, शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत और दूसरा सामना, शिवसेना का मुखपत्र। ये दोनों शिवसेना के परंपरागत तेवर को अपनाये हुए हैं।

गुरुवार को कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व में किसानों के समर्थन में एक मोर्चा निकाला। राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षर वाला निवेदन पत्र लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे, वहीं विजय चौक में प्रियंका गांधी आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के ताजा संपादकीय में लिखा गया है कि किसान आंदोलन को लेकर दिल्ली के सत्ताधीश बेफिक्र हैं। सरकार की इस बेफिक्री का कारण देश का बिखरा हुआ और कमजोर विरोधी दल है।  बिना नाम लिए अन्य दलों पर भी अटैक किया गया है। लिखा है कि पिछले 5 वर्षों में कई आंदोलन हुए। सरकार ने उनको लेकर कोई गंभीरता दिखाई हो, ऐसा नहीं हुआ। यह विरोधी दल की ही दुर्दशा है।

संपादकीय में लिखा है, लोकतंत्र का जो अधोपतन शुरू है, उसके लिए बीजेपी या नरेंद्र मोदी-अमित शाह की सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि विरोधी दल सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। वर्तमान स्थिति में सरकार को दोष देने की बजाय विरोधियों को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। विरोधी दल के लिए एक सर्वमान्य नेतृत्व की आवश्यकता होती है। इस मामले में देश का विरोधी दल पूरी तरह से दिवालिएपन के हाशिए पर खड़ा है।

शिवसेना ने एनसीपी चीफ शरद पवार की खुलकर तारीफ किया है। याद कराया है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अकेले लड़ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी वहां जाकर कानून-व्यवस्था को बिगाड़ रही है। केंद्रीय सत्ता की जोर-जबरदस्ती पर ममता की पार्टी को तोड़ने का प्रयास करती है। ऐसे में देश के विरोधी दलों को एक होकर ममता के साथ खड़ा होने की आवश्यकता है। लेकिन इस दौरान ममता की केवल शरद पवार से ही सीधी चर्चा हुई दिखती है तथा पवार अब पश्चिम बंगाल जानेवाले हैं। यह काम कांग्रेस के नेतृत्व को करना आवश्यक है।

कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी को गत एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष भी नहीं है। सोनिया गांधी ‘यूपीए’ की अध्यक्ष हैं और कांग्रेस का कार्यकारी नेतृत्व कर रही हैं। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। लेकिन उनके आसपास के पुराने नेता अदृश्य हो गए हैं। मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल जैसे पुराने नेता अब नहीं रहे। ऐसे में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? ‘यूपीए’ का भविष्य क्या है, इसको लेकर भ्रम बना हुआ है। तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, अकाली दल, मायावती की बसपा, अखिलेश यादव, आंध्र में जगन की वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव, ओडिशा में नवीन पटनायक और कर्नाटक के कुमारस्वामी जैसे कई दल और नेता भाजपा के विरोध में हैं। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में ‘यूपीए’ में वे शामिल नहीं हुए हैं। जब तक ये भाजपा विरोधी ‘यूपीए’ में शामिल नहीं होंगे, विरोधी दल का बाण सरकार को भेद नहीं पाएगा।

सामना की इन बातों को गंभीरता से लेने पर समझ में आता है कि यह काफी दूर की राजनीति है। कांग्रेस को अस्पष्ट शब्दों में स्पष्ट इशारा है। देश बदल रहा है, मानसिकता बदल रही है, इसलिए दलों को भी अपनी नीति बदलने की जरूरत है, शिवसेना के इशारे तो कुछ ऐसे ही हैं।